बाहर से तो पीटते, सब हिंदी का ढोल।
अंतस में रखते नहीं, इसका कोई मोल॥
एक बरस में आ गई, इनको हिंदी याद।
भाषण-नारे दे रहे, दें ना पानी-खाद॥
अपनी माँ अपनी रहे, इतना लीजे जान।
उसको मिलना चाहिए, जो उसका सम्मान॥
हिंदी की खाते रहे, अंग्रेजी से प्यार।
हिंदी को लगती रही, बस अपनों की मार॥
हिंदी को मिलते रहे, भाषण-नारे-गीत।
पर उसको तो चाहिए, तेरी-मेरी प्रीत॥
सुन! हिंदी में बोल तू, कर कुछ ऐसा काम।
दुनिया भर में हिंद का, होवे ऊंचा नाम॥
हिंदी में मिलती हमें, ‘रोहित' बड़ी मिठास।
इससे सुख मिलता हमें, सबसे लगती खास॥
खुसरो के भायें नहीं, बोलो किसको गीत।
मीरा-तुलसी-सूर से, हो ना किसको प्रीत॥
दो दिन मनते साल में, हिंदी के त्यौहार।
बाकी दिन बस झेलती, ये अपनों की मार॥
- रोहित कुमार 'हैप्पी'