खुसरो की बूझ पहेली

रचनाकार: भारत-दर्शन संकलन

बूझ पहेली (अंतर्लापिका)

यह वो पहेलियाँ हैं जिनका उत्तर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप में पहेली में दिया होता है यानि जो पहेलियाँ पहले से ही बूझी गई हों।

(क)
गोल मटोल और छोटा-मोटा, हर दम वह तो जमीं पर लोटा।
खुसरो कहे नहीं है झूठा, जो न बूझे अकिल का खोटा।।

उत्तर - लोटा।

(ख)
श्याम बरन और दाँत अनेक, लचकत जैसे नारी।
दोनों हाथ से खुसरो खींचे और कहे तू आ री।।

उत्तर - आरी।
यहाँ दूसरी पंक्ति के आखिरी शब्द 'आ' और 'री' को मिलाने से उत्तर मिलता है।

(ग)
हाड़ की देही उज् रंग, लिपटा रहे नारी के संग।
चोरी की ना खून किया वाका सर क्यों काट लिया।

उत्तर - नाखून।

(घ)
बाला था जब सबको भाया, बड़ा हुआ कुछ काम न आया।
खुसरो कह दिया उसका नाव, अर्थ करो नहीं छोड़ो गाँव।।

उत्तर - दिया।

(ञ)
नारी से तू नर भई और श्याम बरन भई सोय।
गली-गली कूकत फिरे कोइलो-कोइलो लोय।।

उत्तर - कोयल।

(च)
एक नार तरवर से उतरी, सर पर वाके पांव
ऐसी नार कुनार को, मैं ना देखन जाँव।।

उत्तर - मैंना।

(छ)
सावन भादों बहुत चलत है माघ पूस में थोरी।
अमीर खुसरो यूँ कहें तू बुझ पहेली मोरी।।

उत्तर - मोरी (नाली)