यदि दर्द पेट में होता हो या नन्हा-मुन्ना रोता हो या आंखों की बीमारी हो अथवा चढ़ रही तिजारी हो तो नहीं डाक्टरों पर जाओ वैद्यों से अरे न टकराओ है सब रोगों की एक दवा-- भई, भाषण दो ! भई, भाषण दो !!
हर गली, सड़क, चौराहे पर भाषण की गंगा बहती है, हर समझदार नर-नारी के कानों में कहती रहती है-- मत पुण्य करो, मत पाप करो, मत राम-नाम का जाप करो, कम-से-कम दिन में एक बार-- भई, भाषण दो ! भई, भाषण दो !!
भाषण देने से सुनो, स्वयं नदियों पर पुल बंध जाएंगे बंध जाएंगे बीसियों बांध ऊसर हजार उग आएंगे। तुम शब्द-शक्ति के इस महत्व को मत विद्युत से कम समझो। भाषण का बटन दबाते ही बादल पानी बरसाएंगे।
इसलिए न मैला चाम करो दिन-भर-प्यारे, आराम करो ! संध्या को भोजन से पहले छोड़ो अपने कपड़े मैले, तन को संवार, मन को उभार कुछ नए शब्द लेकर उधार प्रत्येक विषय पर आंख मूंद-- भई, भाषण दो ! भई भाषण दो !!
- गोपालप्रसाद व्यास ('हास्य सागर' 1966)
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