भारतीय साहित्य और संस्कृति को हिंदी की देन बड़ी महत्त्वपूर्ण है। - सम्पूर्णानन्द।

गोपालप्रसाद व्यास | Gopal Prasad Vyas | Profile & Collections

गोपाल प्रसाद व्यास (Gopal Prasad Vyas) का जन्म 13 फरवरी, 1915 को परासौली, जिला-मथुरा, उत्तर प्रदेश में हुआ था। आपके पिता का ब्रजकिशोर शास्त्री व माता का नाम चमेली देवी था।

आपकी प्रारंभिक शिक्षा परासौली के निकट भवनपुरा में हुई व बाद में मथुरा में। आपने केवल कक्षा सात तक अध्ययन किया।

आपने स्व नवनीत चतुर्वेदी से पिंगल का ज्ञान अर्जित किया। सेठ कन्हैयालाल पोद्दार से अंलकार व रस-सिद्धांत की शिक्षा ली। नायिका भेद का ज्ञान सैंया चाचा से और पुरातत्व, मूर्तिकला, चित्रकला आदि डा वासुदेवशरण अग्रवाल से सीखी। डा सत्येन्द्र से से विशारद और साहित्यरत्न का अध्ययन तथा हिन्दी के नवोन्मेष की शिक्षा ली।

1931 में हिन्डौन (राजस्थान) निवासी प्रतापजी की पौत्री श्रीमती अशर्फी देवी के साथ आपका विवाह हुआ। आपके तीन पुत्र- स्व.जगदीश, गोविन्द व ब्रजमोहन तथा तीन पुत्रियां-श्रीमती पुष्पा उपाध्याय, श्रीमती मधु शर्मा और डा रत्ना कौशिक व एक दर्जन से ऊपर पौत्र-पौत्रियां एवं दौहित्र-दौहित्रियां हैं।

आपका पहला कार्य-क्षेत्र आगरा रहा तत्पश्चात् 1945 से मृत्युपर्यंत दिल्ली में रहे।

आप ब्रजभाषा के कवि, समीक्षक, व्याकरण, साहित्य-शास्त्र, रस-रीति, अलंकार, नायिका-भेद और पिंगल के मर्मज्ञ थे। आपको हिन्दी में व्यंग्य-विनोद की नई धारा का जनक माना जाता है। आप सामाजिक, साहित्यिक, राजनैतिक व्यंग्य-विनोद के प्रतिष्ठाप्राप्त कवि एवं लेखक और 'हास्यरसावतार' के नाम से प्रसिद्ध हैं।

आप पत्रकारिता से जुड़े रहे व आपने 'साहित्य संदेश' आगरा, 'दैनिक हिन्दुस्तान' दिल्ली, 'राजस्थान पत्रिका' जयपुर, 'सन्मार्ग', कलकत्ता में संपादन तथा दैनिक 'विकासशील भारत' आगरा के प्रधान संपादक के रूप में कार्य किया।

आप 1937 से अंतिम समय तक निरंतर स्तंभ लेखन में संलग्न रहे। ब्रज साहित्य मंडल, मथुरा के संस्थापक और मंत्री से लेकर अध्यक्ष तक के पद पर आसीन रहे।

दिल्ली हिन्दी साहित्य सम्मेलन के संस्थापक और 35 वर्षों तक महामंत्री और अंत तक संरक्षक रहे।

व्यासजी ने बीस वर्षों के अनवरत परिश्रम के बाद राजधानी में 'हिन्दी भवन' की स्थापना की। आज हिन्दी भवन विश्व हिन्दी केन्द्र के रूप में आकार ग्रहण कर चुका है और अपनी प्रगति की ओर निरंतर बढ़ रहा है। आप हिन्दी भवन न्यास समिति के संस्थापक महामंत्री के पद पर अंत तक रहे।

आप लाल किले के 'राष्ट्रीय कवि-सम्मेलन' और देशभर में होली के अवसर पर 'मूर्ख महासम्मेलनों' के जन्मदाता और संचालक रहे।

हिन्दी के पचास से ऊपर ग्रथों के लेखक, जिनमें खंडकाव्य, काव्य-संग्रह, व्यंग्य-विनोद एवं ललित निबंध, जीवनी, यात्रा संस्मरण और समीक्षात्मक ग्रंथ शामिल हैं। इनमें से कुछ के देशी और विदेशी भाषाओं में अनुवाद भी हुए हैं।

28 मई, 2005, प्रातः 6 बजे नई दिल्ली में अपने निवास पर आपका निधन हो गया।

गोपालप्रसाद व्यास | Gopal Prasad Vyas's Collection

Total Records: 14

आराम करो | हास्य कविता

एक मित्र मिले, बोले, "लाला, तुम किस चक्की का खाते हो?इस डेढ़ छटांक के राशन में भी तोंद बढ़ाए जाते हो।क्या रक्खा माँस बढ़ाने में, मनहूस, अक्ल से काम करो।संक्रान्ति-काल की बेला है, मर मिटो, जगत में नाम करो।"हम बोले, "रहने दो लेक्चर, पुरुषों को मत बदनाम करो।इस दौड़-धूप में क्या रक्खा, आराम करो, आराम करो।

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नेता एकम नेता 

नेता एकम नेता हरदम उल्लू चेता 

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भई, भाषण दो ! भई, भाषण दो !!

यदि दर्द पेट में होता होया नन्हा-मुन्ना रोता होया आंखों की बीमारी होअथवा चढ़ रही तिजारी होतो नहीं डाक्टरों पर जाओवैद्यों से अरे न टकराओहै सब रोगों की एक दवा--भई, भाषण दो ! भई, भाषण दो !!

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हाय, न बूढ़ा मुझे कहो तुम !

हाय, न बूढ़ा मुझे कहो तुम !शब्दकोश में प्रिये, और भीबहुत गालियाँ मिल जाएँगीजो चाहे सो कहो, मगर तुममरी उमर की डोर गहो तुम !हाय, न बूढ़ा मुझे कहो तुम !

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सरकार कहते हैं

बुढ़ापे में जो हो जाए उसे हम प्यार कहते हैं,जवानी की मुहब्बत को फ़कत व्यापार कहते हैं।जो सस्ती है, मिले हर ओर, उसका नाम महंगाई,न महंगाई मिटा पाए, उसे सरकार कहते हैं।

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दिवाली के दिन | हास्य कविता

''तुम खील-बताशे ले आओ,हटरी, गुजरी, दीवट, दीपक।लक्ष्मी - गणेश लेते आना,झल्लीवाले के सर पर रख।

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हिन्दी की होली तो हो ली

(इस लेख का मज़मून मैंने होली के ऊपर इसलिए चुना कि 'होली' हिन्दी का नहीं, अंग्रेजी का शब्द है। लेकिन खेद है कि हिंदुस्तानियों ने इसकी पवित्रता को नष्ट करके एकदम गलीज़ कर दिया है। हिन्दी की होली तो हो ली, अब तो समूचे भारत में अंग्रेजी की होली ही हरेक चौराहे पर लहक रही है।)

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सत्ता

सत्ता अंधी हैलाठी के सहारे चलती है।सत्ता बहरी हैसिर्फ धमाके सुनती है।सत्ता गूंगी हैसिर्फ माइक पर हाथ नचाती है।कागज छूती नहींआगे सरकाती है।सत्ता के पैर भारी हैंकुर्सी पर बैठे रहने की बीमारी है।पकड़कर बिठा दोमारुति में चढ़ जाती है।वैसे लंगड़ी हैबैसाखियों के बल चलती है।सत्ता अकड़ू हैमाला पहनती नहीं, पकड़ू है।कोई काम करती नहीं अपने हाथ से,चल रही है चमचों के साथ से।

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सीखा पशुओं से | व्यंग्य कविता

कुत्ते से सीखी चापलूसीमलाई चट करना बता गई पूसीबकरे से अहं ब्रह्मास्मि-मैं-मैंकहां तक जानवरों को धन्यवाद दें !बैलों से सीखा खटना,दुम्बे से चोट मारने के लिए पीछे हटना,भेड़िए से अपने लिएखुद कानून बनाना,भेंड़ों से आंख मूंदकरपीछे-पीछे आना,लोमड़ी ने सिखलाई चालाकीबताओ, अब और क्या रह गया बाकी ?

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कवि हूँ प्रयोगशील

गलत न समझो, मैं कवि हूँ प्रयोगशील,खादी में रेशम की गांठ जोड़ता हूं मैं।कल्पना कड़ी-से-कड़ी, उपमा सड़ी से सड़ी,मिल जाए पड़ी, उसे नहीं छोड़ता हूँ मैं।स्वर को सिकोड़ता, मरोड़ता हूँ मीटर कोबचना जी, रचना की गति मोड़ता हूं मैं।करने को क्रिया-कर्म कविता अभागिनी का,पेन तोड़ता हूं मैं, दवात फोड़ता हूँ मैं ॥

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व्यंग्य कोई कांटा नहीं

व्यंग्य कोई कांटा नहीं-फूल के चुभो दूं ,कलम कोई नश्तर नहीं-खून में डूबो दूंदिल कोई कागज नहीं-लिखूं और फाडूंसाहित्य कोई घरौंदा नहीं-खेलूं और बिगाडूं !

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नारदजी को व्यासजी का नमस्कार!

वंदनीय, भक्तप्रवर, देवर्षि एवं आदिपत्रकार नारदजी महाराज, मेरे हार्दिक प्रणाम स्वीकार करें !

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खूनी हस्ताक्षर

वह खून कहो किस मतलब का,जिसमें उबाल का नाम नहीं ?वह खून कहो किस मतलब का,आ सके देश के काम नहीं ?

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नेताजी का तुलादान

देखा पूरब में आज सुबह,एक नई रोशनी फूटी थी।एक नई किरन, ले नया संदेशा,अग्निबान-सी छूटी थी॥

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