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अपनी गलीमोहल्ला अपना,अपनी बाणीखाना अपना,थी अपनी भी इक पहचान।
महानगर में बसे हुए हैंबड़े-बड़े हैं सभी मकान,फ़ीकी हँसी लबों पर रखतेसुंदर डाले हैं परिधान,भीड़भाड़ में ढूँढ रहे हैंखोई हुई अपनी पहचान।
- रोहित कुमार 'हैप्पी'
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