यह संदेह निर्मूल है कि हिंदीवाले उर्दू का नाश चाहते हैं। - राजेन्द्र प्रसाद। 

प्रियतम का दूत

 (कथा-कहानी) 
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रचनाकार:

 स्वामी विवेकानंद

एक बार उन्हें गोरखा सांप ने काट लिया था। आपके विश्वती पर प्रभाव से वे थोड़े ही समय में बेसुध हो गए थे। इस अवस्था में बहुत समय व्यतीत हो गया। लोगों ने समझा, महात्मा मर गए हैं। परंतु आश्चर्य की बात है कि कई घंटे के पश्चात उनकी चेतना लौट आई। धीरे-धीरे वह उठ कर बैठ गए और थोड़े ही समय में अपने आपको पूर्णता स्वस्थ अनुभव करने लग गए।  यह देखकर सभी लोग विस्मित हो उठे। के एक व्यक्ति ने उनसे पूछ ही लिया, "बाबा जी! इस समय आप अपने आप को कैसा अनुभव करते हैं?"

बाबा ने मुस्कुराकर उत्तर दिया, "बहुत अच्छा हूं - स्वस्थ हूं। स्वर्ग से मेरे प्रियतम ने मेरे पास आज एक दूत भेजा था।

मृत्युदूत गोरखा सांप को उन्होंने अपने प्रियतम का दूत मान लिया था।

- स्वामी विवेकानंद

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