खिड़की बन्द कर दो अब सही जाती नहीं यह निर्दयी बरसात-खिड़की बन्द कर दो।
यह खड़ी बौछार, यह ठंडी हवाओं के झकोरे, बादलों के हाथ में यह बिजलियों के हाथ गोरे कह न दें फिर प्राण से कोई पुरानी बात - खिड़की बन्द कर दो।
वो अकेलापन कि अपनी साँस लगती फाँस जैसी, काँपती पीली शिखा दिखती दिये की लाश जैसी, जान पड़ता है न होगा इस निशा का प्राप्त - खिड़की बन्द कर दो।
था यही वह वक्त मेरे वक्ष में जब सिर छिपाकर, था कहा तुमने तुम्हारी प्रीति है मेरी महावर, बन गई कालिख तुम्हें पर अब वही सौगात - खिड़की बन्द कर दो।
अब न तुम वह , अब न मैं वह, वे न मन में कामनायें, आँसुओं में घुल गई अनमोल सारी भावनायें, किसलिए चाहूँ चढ़े फिर उम्र की बारात - खिड़की बन्द कर दो।
रो न मेरे मन, न गीला आसुओं से कर बिछौना, हाथ मत फैला पकड़ने को लड़कपन का खिलौना, मेंह-पानी में निभाता कौन किसका साथ - खिड़की बन्द कर दो।
- गोपालदास 'नीरज'
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