हिंदी भाषा को भारतीय जनता तथा संपूर्ण मानवता के लिये बहुत बड़ा उत्तरदायित्व सँभालना है। - सुनीतिकुमार चाटुर्ज्या।

बदलीं जो उनकी आँखें

 (काव्य) 
Print this  
रचनाकार:

 सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' | Suryakant Tripathi 'Nirala'

बदलीं जो उनकी आँखें, इरादा बदल गया ।
गुल जैसे चमचमाया कि बुलबुल मसल गया ।

यह टहनी से हवा की छेड़छाड़ थी, मगर
खिलकर सुगन्ध से किसीका दिल बदल गया ।

ख़ामोश फ़तह पाने को रोका नहीं रुका
मुश्किल मुकाम, ज़िंदगी का जब सहल गया ।

मैंने कला की पाटी ली है शेर के लिए,
दुनियां के गोलन्दाजों को देखा, दहल गया ।

- निराला

Back
 
Post Comment
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश