जो साहित्य केवल स्वप्नलोक की ओर ले जाये, वास्तविक जीवन को उपकृत करने में असमर्थ हो, वह नितांत महत्वहीन है। - (डॉ.) काशीप्रसाद जायसवाल।

धुंध है घर में उजाला लाइए

 (काव्य) 
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रचनाकार:

 ऋषभदेव शर्मा

धुंध है घर में उजाला लाइए
रोशनी का इक दुशाला लाइए

केचुओं की भीड़ आँगन में बढ़ी
आदमी अब रीढ़ वाला लाइए

जम गया है मोम सारी देह में
गर्म फौलादी निवाला लाइए

जूझने का जुल्म से संकल्प दे
आज ऐसी पाठशाला लाइए

- डॉ.ऋषभदेव शर्मा
  (तरकश, 1996)

 

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