विदेशी भाषा के शब्द, उसके भाव तथा दृष्टांत हमारे हृदय पर वह प्रभाव नहीं डाल सकते जो मातृभाषा के चिरपरिचित तथा हृदयग्राही वाक्य। - मन्नन द्विवेदी।

सड़कों पे ढले साये | कविता

 (काव्य) 
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रचनाकार:

 उपेन्द्रनाथ अश्क | Upendranath Ashk

सड़कों पे ढले साये 
दिन बीत गया, राहें
हम देख न उकताये! 

सड़कों पे ढले साये 
जिनको न कभी आना,
वे याद हमें आये!

सड़कों पे ढले साये
जो दुख से चिर-परिचित
कब दुख से घबराये!

-उपेन्द्रनाथ अश्क

 

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