राष्ट्रभाषा के बिना आजादी बेकार है। - अवनींद्रकुमार विद्यालंकार।

सुहाना सहाना लगे | गीत

 (काव्य) 
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रचनाकार:

 अनिता बरार | ऑस्ट्रेलिया

सुहाना सहाना लगे
यह मौसम, यह रिमझिम
यह सरगम, यह गुंजन
यादों के बीच चले जब बचपन
सुहाना सूहाना लगे यह मौसम यह रिमझिम

मदहोश लहरों से सतरंगी सपने
आँखों में ठहरे साँझ सवेरे
धरती को चूमें अमुवा की डालें
बहकी फिजाओं में खुशबू के डेरे
पेड़ों के झुरमुट तले,
यह पंचम, यह थिरकन, यह झनझन, यह उन्मन
मेघा के बीच चले जब बचपन
सुहाना सूहाना लगे यह मौसम यह रिमझिम

कजरारे बादल में उलझे ये चंदा
ढ़ूंढ रहा है अपना यह रस्ता
धुंधले पहाड़ों से ठंडी हवायें
आँख मिचौली करें साँझ सकारे
खामोशियों के तले
यह सिहरन, यह धड़कन, यह कम्पन, यह तड़पन
शबनम के बीच चले जब बचपन
सुहाना सुहाना लगे यह मौसम यह रिमझिम


- अनिता बरार
  ई-मेल: anita.barar@gmail.com
  ( सी डी संकलन - दूरियाँ, 2000)

 

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