छोटी सी बिगड़ी बात को सुलझा रहे हैं लोग यह और बात है के यूँ उलझा रहे हैं लोग
चर्चा तुम्हारा बज़्म में ग़ैरों के इर्द गिर्द कुछ इस तरह से दिल मेरा बहला रहे हैं लोग
अरमाँ नये साहिल नये सब सिलसिले नये उजड़े हुए दायर में दिखला रहे हैं लोग
कहते हैं कभी इश्क़ था अब रख रखाओ है फिर आज क्यों यूँ देखकर शर्मा रहे है लोग
हमने खुद अपने जुर्म का इक़रार कर लिया अब क्यों "रज़ा" से इस क़दर कतरा रहे हैं लोग
-अब्बास रज़ा अल्वी |