सायक बिकते हैं धनुः विद्या भी बिकती है पर बिकते नहीं हैं तो केवल द्रोणचार्य जैसे गुरु। लेकिन सौभाग्य से अगर मिल भी गए और कृपालु हों वे अर्जुन ही समझ लें तुम्हें तो किंकर्तव्यविमूढ़ की भांति तुम लक्ष्य अनुसंधान कर पाओगे? भेद पाओगे! क्या? वह आँख? अगर इस दुष्कर कार्य में सफलता मिल भी गई तो मांग बैठेगा तुमसे ! गुरुदक्षिणा ! जो तुम दे नहीं पाओगे क्योंकि तुम एकलव्य नहीं हो।
-जैनन प्रसाद ई-मेल: jprasad@unicef.org
|