सीता हुई भूमिगत, सखी बनी सूपनखा वचन बिसर गए देर के सबेर के बन गया साहूकार लंकापति विभीषण पा गए अभयदान शावक कुबेर के जी उठा दसकंधर, स्तब्ध हुए मुनिगण हावी हुआ स्वर्णमरिग कंधों पर शेर के बुढ़भस की लीला है, काम के रहे न राम शबरी न याद रही, भूले स्वाद बेर के
--नागार्जुन [1961]
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