अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
इन चिराग़ों के | ग़ज़ल (काव्य)    Print this  
Author:राजगोपाल सिंह

इन चिराग़ों के उजालों पे न जाना, पीपल
ये भी अब सीख गए आग लगाना, पीपल

जाने क्यूँ कहता है ये सारा ज़माना, पीपल
अच्छा होता नहीं आंगन में लगाना पीपल

गाँव में ज़िन्दा है अब भी वो पुराना पीपल
कितने गुमनाम परिन्दों का ठिकाना पीपल

ख़ुद में सिमटा है अमीरी का ज़माना, पीपल
अपने ही पास रखो अपना ख़ज़ाना, पीपल

आंधियों का कोई मुख़बिर न छुपा हो इनमें
हर मुसाफ़िर से न हर बात बताना, पीपल

- राजगोपाल सिंह

 

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