जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।

फूलों का गीत  (बाल-साहित्य )

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रचनाकार: निरंकार देव

 

हम फूलों ने सीखा खिलना
हँसना और हँसाना,
अपनी मधुर महक से सारे
उपवन की महकाना।

मन्द पवन में झूम-झूमकर
डाली पर इतराना,
भौरों के मन के प्याले को
मधु रस से भर जाना ।

तितली अपने चपल परों की
रंगत हम से पाती,
इधर-उधर उड़ अपनी छवि से
सबका चित्त लुभाती ।

गीत हमारी ही शोभा के
कोयल गाने आती,
गौरैया गुणगान हमारे
गाते नहीं अघाती ।

काँटों की गोदी में पल कर
हम हँसते रहते हैं,
सूरज की गर्मी में जलकर
हम हँसते रहते हैं।

अन्त समय धरती पर गिरकर
हम हँसते रहते हैं,
हम जीवन भर समझ न पाते
दुख किसको कहते हैं।

-निरंकार देव
[बाल-गीत, संकलन-क्षेत्रपाल, साहित्य सहयोग, इलाहाबाद, १९७४]

 

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