जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।

मीठी वाणी | बाल कविता (बाल-साहित्य )

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रचनाकार: प्रभुदयाल श्रीवास्तव

छत पर आकर बैठा कौवा,
कांव-कांव चिल्लाया ।
मुन्नी को यह स्वर ना भाया,
पत्थर मार भगाया

तभी वहां पर कोयल आई,
कुहू-कुहू चिल्लाई 

उसकी प्यारी-प्यारी बोली,
मुनिया के मन भाई ।

मुन्नी बोली प्यारी कोयल,
रहो हमारे घर में ।
शक्कर से भी ज्यादा मीठा,
स्वाद तुम्हारे स्वर में ।

मीठी बोली वाणी वाले,
सबको सदा सुहाते ।
कर्कश कड़े बोल वाले कब,
दुनिया को हैं भाते !

-प्रभुदयाल श्रीवास्तव

pdayal_shrivastava@yahoo.com

 

 

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