यह कैसे संभव हो सकता है कि अंग्रेजी भाषा समस्त भारत की मातृभाषा के समान हो जाये? - चंद्रशेखर मिश्र।

हर देश में तू, हर भेष में तू (बाल-साहित्य )

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रचनाकार: संत तुकड़ोजी

हर देश में तू, हर भेष में तू, तेरे नाम अनेक तू एकही है।
तेरी रंगभूमि यह विश्व भरा, सब खेल में, मेल में तू ही तो है।।
सागर से उठा बादल बनके, बादल से फटा जल हो करके।
फिर नहर बना नदियाँ गहरी, तेरे भिन्न प्रकार, तू एकही है।।
चींटी से भी अणु-परमाणु बना, सब जीव-जगत् का रूप लिया।
कहीं पर्वत-वृक्ष विशाल बना, सौंदर्य तेरा, तू एकही है।।
यह दिव्य दिखाया है जिसने, वह है गुरुदेव की पूर्ण दया।
तुकड़या कहे कोई न और दिखा, बस मैं अरु तू सब एकही है।।

- संत तुकड़ोजी

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