जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।

दीवाली किसे कहते हैं? (कथा-कहानी)

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Author: रोहित कुमार 'हैप्पी'

"बापू परसों दीवाली है, ना? बापू, दीवाली किसे कहते हैं?" सड़क के किनारे फुटपाथ पर दीये बेच रहे एक कुम्हार के फटेहाल नन्हे से बच्चे ने अपने बाप से सवाल किया।

"जिस दिन लोगों को ढेर से दीयों की जरूरत पड़ती है और अपने ढेर से दीये बिकते हैं, उसी को दीवाली कहते हैं, बेटा!'

"बापू, आज लोग नए-नए कपड़े और मिठाई भी खरीदते हैं!" बच्चे ने बाप से फिर प्रश्न करते हुए, मिठाई और नए कपड़े पाने की चाहत में अपनी आँखे पिता पर गड़ा दी।

"हाँ, बेटा! आज मैं तुम्हारे लिए भी मिठाई और कपड़े खरीदूंगा।" कहकर, सोचने लगा, 'क्या उसकी बिक्री इतनी होगी?' उसने अपने बेटे की ओर देखा - बच्चे की आँखों में लाखों दीये जगमग-जगमग कर रहे थे। 'आज बापू शायद उसके लिए भी कपड़े और मिठाई खरीदने वाला था।'

बाप की आँखों से आँसू छलक कर नीचे पड़े दीये में जा पड़ा।

-रोहित कुमार 'हैप्पी'
  न्यूज़ीलैंड।

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Posted By महेश कुमार गोंड    on Friday, 27-Nov-2015-06:25
डिअर , रोहित कुमार जी , मैं आपकी रचनाओं को सलाम करता हूँ I अद्भुत एवं सराहनीय लेखन I
 
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