जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।

पैरोडीदास का गीत (काव्य)

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Author: पैरोडीदास

सरल है बहुत चांद-सा मुख छिपाना, 
मगर चाँद सिर की छिपाना कठिन है।

अगर नौकरी या कि धंधा मिला हो, 
कि पह‌ना हुआ सूट बड़िया सिला हो। 
सरल है बहुत ब्याह करना किसी से, 
मगर ब्याह कर के निभाना कठिन है।

अगर सीनियर है सभी से बनी है, 
जरा मेहनती, भाग्य के भी धनी है, 
सरल है बहुत अफसरी किन्तु घर में--
तनिक अफसरीयत जतना कठिन है।

सभी लोग सच्चे दया-धर्म वाले, 
कि ईमान वाले हया-शर्म वाले, 
सरल नेक बनना व नेकी चुकाना, 
मगर कर्ज लेकर चुकाना कठिन है।

अगर है इकन्नी लिया एक सिगरिट, 
बचा जो अधन्ना लिया पान झटपट, 
सरल है रईसी दिखाना अकड़ना, 
मगर जेब खाली छिपाना कठिन है।

सरल है बहुत चाँद-सा मुख छिपाना, 
मगर चाँद सिर की छिपाना कठिन है।

-पैरोडीदास

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