भाषा की समस्या का समाधान सांप्रदायिक दृष्टि से करना गलत है। - लक्ष्मीनारायण 'सुधांशु'।

बचपन बीत रहा है (काव्य)

Print this

रचनाकार: योगेन्द्र प्रताप मौर्य

नचा रही मजबूरी यहाँ
अँगुलियों पर,
ध्यान किसी का जाता नहीं
सिसकियों पर।

इतनी कच्ची वय में कितने
काम कराती है,
दुनिया जालिम हाथों में
औजार थमाती है,
खिल पायेंगे कैसे फूल
टहनियों पर?

पेट पालने खातिर रामू
कष्ट उठाता है,
सर पर इतना बोझ रखा है
हँस कब पाता है,
लगी हुई पाबंदी इसकी
खुशियों पर?

दीवारों पर श्रम-निषेध के
पोस्टर चिपके हैं,
किंतु दुर्दशा ऐसी,इनके
चिथड़े लटके हैं,
बचपन बीत रहा है रोज
चिमनियों पर।

--योगेन्द्र प्रताप मौर्य
  ग्राम व पोस्ट-बरसठी, जनपद-जौनपुर, उ० प्र०- 222162, भारत
  ई-मेल: yogendramaurya198384@gmail.com

Back

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें