मैं हूँ--
न संज्ञा, न सर्वनाम,
वर्णाक्षरों के भीड़ में,
शायद कोई
मात्रा गुमनाम!
मैं हूँ--
न उद्भव, न पराभव
शायद अबोध निस्पंदन,
त्वरित संग्राम!
मैं हूँ--
न स्वर, न व्यंजन
स्फुरित संकल्पों के मध्य,
कुलबुलाता अल्पविराम!
मैं हूँ--
न जय, न पराजय
उत्सव के छणों को निहारता,
अव्यक्त स्वर संधान!
-शंभू ठाकुर
ई-मेल: ester_thakur@yahoo.co.in