अकबर से लेकर औरंगजेब तक मुगलों ने जिस देशभाषा का स्वागत किया वह ब्रजभाषा थी, न कि उर्दू। -रामचंद्र शुक्ल

न संज्ञा, न सर्वनाम (काव्य)

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रचनाकार: शंभू ठाकुर

मैं हूँ-- 
न संज्ञा, न सर्वनाम,
वर्णाक्षरों के भीड़ में,
शायद कोई 
मात्रा गुमनाम!

मैं हूँ-- 
न उद्भव, न पराभव
शायद अबोध निस्पंदन, 
त्वरित संग्राम!

मैं हूँ--
न स्वर, न व्यंजन
स्फुरित संकल्पों के मध्य, 
कुलबुलाता अल्पविराम!

मैं हूँ-- 
न जय, न पराजय
उत्सव के छणों को निहारता, 
अव्यक्त स्वर संधान!

-शंभू ठाकुर
ई-मेल: ester_thakur@yahoo.co.in

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