मैं नहीं समझता, सात समुन्दर पार की अंग्रेजी का इतना अधिकार यहाँ कैसे हो गया। - महात्मा गांधी।

ख़्वाब छीने, याद भी...  (काव्य)

Print this

Author: कमलेश भट्ट 'कमल' 

ख़्वाब छीने, याद भी सारी पुरानी छीन ली 
वक़्त ने हमसे हमारी हर कहानी छीन ली। 

पर्वतों से आ गई यूँ तो नदी मैदान में 
पर उसी मैदान ने सारी रवानी छीन ली। 

दौलतों ने आदमी से रूह उसकी छीनकर 
आदमी से आदमी की ही निशानी छीन ली। 

देखते ही देखते बेरोज़गारी ने यहाँ 
नौजवानों से समूची नौजवानी छीन ली। 

इस तरह से दोस्ती सबसे निभाई उम्र ने 
पहले तो बचपन चुराया फिर जवानी छीन ली।

-कमलेश भट्ट 'कमल' 

Back

 
Post Comment
 
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश