रखकर अपनी आंख में कुछ अर्जियां, तुम देखना
बस मिलेंगी कागजी हमदर्दियां, तुम देखना
हादसों के खौफ से लब पे हैं जो फैली हुई
एक दिन टूटेंगी सब खामोशियां, तुम देखना
स्याह काले हाशियों के बीच होगा फिर लहू
सुबह के अखबार की कल सुर्खियाँ तुम देखना
राज़ सब दीवारो-दर के खुद-ब-खुद खुल जाएंगे
बस जरा सा गौर से वो खिड़कियाँ तुम देखना
हाथ जो फैले हुए हैं अपने हक के वास्ते
एक दिन बन जाएंगे सब मुट्ठियां तुम देखना
आस्मां तक ले के जाएंगी तुम्हें ये खूबियां
शर्त है 'गुलशन' कि अपनी खामियां तुम देखना।
-गुलशन मदान, भारत