मैं नहीं समझता, सात समुन्दर पार की अंग्रेजी का इतना अधिकार यहाँ कैसे हो गया। - महात्मा गांधी।

रखकर अपनी आंख में... (काव्य)

Print this

Author: गुलशन मदान

रखकर अपनी आंख में कुछ अर्जियां, तुम देखना 
बस मिलेंगी कागजी हमदर्दियां, तुम देखना 

हादसों के खौफ से लब पे हैं जो फैली हुई 
एक दिन टूटेंगी सब खामोशियां, तुम देखना 

स्याह काले हाशियों के बीच होगा फिर लहू 
सुबह के अखबार की कल सुर्खियाँ तुम देखना 

राज़ सब दीवारो-दर के खुद-ब-खुद खुल जाएंगे 
बस जरा सा गौर से वो खिड़कियाँ तुम देखना 

हाथ जो फैले हुए हैं अपने हक के वास्ते 
एक दिन बन जाएंगे सब मुट्ठियां तुम देखना 

आस्मां तक ले के जाएंगी तुम्हें ये खूबियां 
शर्त है 'गुलशन' कि अपनी खामियां तुम देखना।

-गुलशन मदान, भारत

Back

 
Post Comment
 
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश