ओ देस से आने वाले बता
किस हाल में है याराने-वतन?
क्या अब भी वहाँ के बाग़ों में मस्ताना हवायें आती हैं?
क्या अब भी वहाँ के परबत पर घनघोर घटायें छाती हैं?
क्या अब भी वहाँ की बरखायें वैसे ही दिलों को भाती हैं?
ओ देस से आने वाले बता!
क्या अब भी वतन के वैसे ही सरमस्त नज़ारे होते हैं?
क्या अब भी सुहानी रातों को वो चाँद-सितारे होते हैं?
हम खेल जो खेला करते थे अब भी वो सारे होते हैं?
ओ देस से आने वाले बता!
क्या शाम पड़े सड़कों पै वही दिलचस्प अन्धेरा होता है?
औ' गलियों की धुन्धली शमओं पर सायों का बसेरा होता है?
या जागी हुई आँखों को ख़ुमार और ख़्वाब ने घेरा होता है?
ओ देस से आने वाले बता!
क्या अब भी महकते मन्दिर से नाक़ूस की आवाज़ आती है?
क्या अब भी मुक़द्दस मस्जिद पर मस्ताना अज़ाँ थर्राती है?
औ' शाम के रंगीं सायों पर अ़ज़मात-सी छा जाती है?
ओ देस से आने वाले बता!
क्या अब भी वहाँ के पनघट पर पनहारियाँ पानी भरती हैं?
अँगड़ाई का नक़शा बन-बनकर सब माथे पै गागर धरती हैं?
और अपने घरों को जाते हुए हँसती हुई चुहलें करती है?
ओ देस से आने वाले बता!
बरसात के मौसम अब भी वहाँ वैसे ही सुहाने होते हैं?
क्या अब भी वहाँ के बाग़ों में झूले औ' गाने होते हैं?
क्या अब भी कहीं कुछ देखते ही नौ-उम्र दिवाने होते हैं?
ओ देस से आनेवाले बता!
क्या अब भी वहाँ बरसात के दिन बाग़ों में बहारें आती है?
मासूमो-हसीं दोशीजायें बरखा के तराने गाती हैं?
औ' तीतरियों की तरह से रंगी झूलों पर लहराती हैं?
ओ देस से आनेवाले बता!
क्या गाँव में अब भी वैसी ही मस्ती भरी रातें आती हैं?
देहात की कमसिन माहवशीं तालाब की जानिब जाती हैं?
औ' चाँद की सादह रोशनी में रंगीन तराने गाती हैं?
ओ देस से आनेवाले बता!
क्या अब भी किसी के सीने में बाक़ी है हमारी चाह बता?
क्या याद हमें भी करता है, अब यारों में कोई आह, बता?
ओ देस से आनेवाले बता, लिल्लाह बता, लिल्लाह बता!
ओ देस से आनेवाले बता!
-अख़्तर शीरानी