तीन आदमियों ने एक ही प्रकार का अपराध किया था किन्तु राजा विक्रमादित्य ने सभी को भिन्न दंड दिया अर्थात् एक को तो बुला कर इतना ही कहा कि तुम जैसे भले आदमी को ऐसा करना शोभा नहीं देता। दूसरे को बुला कर बुरा-भला कहा और कुछ झिड़का भी। तीसरे को काला मुँह कराकर गधे पर सवार कराया और पूरे नगर में फिराया।
किसी ने पूछा कि महाराज! अपराध तो एक ही तरह का था, परंतु आपने इन्हें अलग-अलग तरह का दंड क्यों दिया?
विक्रमादित्य ने उत्तर में कहा कि अच्छा तीनों का समाचार मँगवाओ और देखो वे क्या करते हैं। सूचना मिली कि जिस व्यक्ति को केवल उसके अशोभनीय होने की काही थी, वह ज़हर खाकर मर गया। जिसको बुरा-भला कहा था, वह घर-बार छोड़कर चला गया; मगर तीसरा आदमी पोशाक बदलकर शराब के नशे में बेधड़क जुआ खेल रहा है।
दरबारी को राजा की न्याय-नीति और अपराधियों की प्रकृति पहचानकर दंड देने का विधान जानकर बहुत प्रसन्नता हुई।
[भारत-दर्शन संकलन]