जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।

चमकता रहूँ माँ (काव्य)

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Author: नरेन्द्र कुमार

चरणों की धूल, माथे पर लगाकर 
तेरी पूजा करूं मैं जिंदगी भर 
आंचल की छांव में आशीष पाकर
चमकता रहूं माँ जगमगाकर 
पालन पोषण का उपहार पाकर
समाऊं धरा में जग महकाकर 
एक फूल तेरे चरणों में सजाकर 
पूजा करूं माँ शीश झुकाकर 
चरणों की धूल माथे पर लगाकर
नमन करूं माँ शीश नवाकर

-नरेन्द्र कुमार
पंतनगर उत्तराखण्ड
ई-मेल :   narendraku155196@gmail.com

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