देहात का विरला ही कोई मुसलमान प्रचलित उर्दू भाषा के दस प्रतिशत शब्दों को समझ पाता है। - साँवलिया बिहारीलाल वर्मा।

चिंगारी (कथा-कहानी)

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Author: जूही विजय

दिन इतवार का था।

बाहर बारिश तेज हो चुकी थी और नितिन अपनी निर्धारित जगह पर गाड़ी लगाकर बेतकल्लुफ था। ऐसा शायद इसलिए क्योंकि उसे पता था की आज कोई सवारी नहीं मिलेगी।

वह जानता था, इस मूसलाधार बारिश में कोई अपने घर से निकलना नहीं चाहता।

कहने को वह एक बड़े शहर में रहता है, लेकिन यह बड़ा शहर भी बरसात के आगे अपने घुटने टेक देता है और इसकी सारी भाग-दौड़ थम जाती है। देखते ही देखते इतना बड़ा शहर बारिश के सामने बहुत छोटा नज़र आने लगता है।

नितिन जिस शहर-समाज से हारा था, उसका यूं मामूली सी बरसात जैसी चीज से हार जाना नितिन को एक अलग किस्म की संतुष्टि देता है।   

बारिश की बूंदे गाड़ी की छत पर गिरती हैं तो यूं आवाज़ होती है जैसे किसी ने दूर से कोई पत्थर फेंका हो।   

अधेड़ उम्र में हर आदमी के पास दो ही चीजें रह जाती हैं – बीते हुए दिनों का सुख और आने वाले कल की जिम्मेदारियों का बोझ। ‘आज’ दोनों के बीच कहीं खो जाता है और ढूंढे नहीं मिलता।

वह कई बार जोड़-भाग कर चुका था पर दहेज की रकम है कि पूरी नहीं होती। उसने देर रात तक टैक्सी चलाना भी तो इसलिए ही शुरू किया था कि जैसे-तैसे जोड़-तोड़ कर बस दहेज की रकम इकट्ठा कर ले।  

लड़का एक बड़ी कंपनी में बाबू है और तनख्वाह के ऊपर भी काफी कुछ कमा लेता है।

“यह रिश्ता हाथ से जाना नहीं चाहिए।“ माँ का हुकूम था।

“लेकिन माँ, नीतू का यह आखिरी साल है फिर इसकी डिग्री भी पूरी हो जाएगी। साल-दर-साल यह कॉलेज टॉप करती आई है। शादी की इतनी जल्दी भी कहाँ है?”

“क्यूँ? शादी के बाद भी तो पढ़ाई जारी रख सकती है – कहा तो है, समधी जी ने। ...और इसे कौनसा कलेक्टर बनना है कहीं का? तेरा जो हाल हुआ है, नीतू का भी वही हाल करना है क्या?’

बस, इसी तरह जो बीत गया था, उसका तमगा किसी गाली की तरह उसके माथे पर लगा दिया जाता और उसकी पहचान को उसी तमगे में सिकोड़ दिया जाता। कुछ गलतियाँ ऐसी होती हैं जिन्हे माफ किया जा सकता है, जिन्हे माफ कर देना चाहिए।

खैर, एक तरफ माँ, बाकी का परिवार व समाज और दूसरी तरफ केवल नीतू और समाज से हारा हुआ नितिन। पलड़ा किस तरफ झुकेगा यह बताना सरल था।

यह सब सोचते हुए एकाएक नितिन का दम घुटने लगा। उसे लग रहा था जैसे उसका अतीत फिर उसकी गर्दन जकड़ने आ रहा हो। यह देखकर कि जिन बातों को भूलने की कोशिश में वह एक अरसे से है, वह हर बार उसे अगले मोड़ पर इंतजार करती मिलती हैं, वह उत्तेजित हो गया। गाड़ी के अंदर एक बोझिल-सा भारीपन दाखिल होने लगा। उसने इतनी खिड़की खोल ली कि बारिश की बूंदें गाड़ी के अंदर न गिरें पर जो भारीपन भीतर है, वह बाहर फैल जाए। नितिन ने गाड़ी की सीट पीछे की और जेब से एक सिगरेट निकाली। वह सिगरेट जलाने ही लगा था कि फोन बज उठा।

“अभी कुछ देर और लगेगी या तड़के ही आऊँ, यह भी हो सकता है।“

माँ का यह सवाल न करना कि इतनी भीषण बारिश में कहाँ कोई सवारी मिलेगी या इस तरह बरसात में क्यूँ  परेशान होना, उसे खला नहीं।

“क्या बात है? अभी कह दो।“

यह भी उसने इस उदासीनता से कहा था, जैसे अब उसे किसी बात से कोई फ़र्क नहीं पड़ता हो।

“क्या? लेकिन उन्होंने तो साफ-साफ कहा था कि नीतू शादी के बाद अपनी पढ़ायी जारी रख सकती है?” नितिन बौखला गया।

माँ उस से कुछ और देर तक बातें करती रहीं। वह बातें उसके कान पर रेंगी लेकिन भीतर प्रवेश न कर सकी। उसे अब केवल इस बात की फिक्र थी कि नीतू जैसी समझदार भी समाज के नियम तले दब जाएगी, नीतू के लिए जिस उज्ज्वल भविष्य की कामना उसने की थी, वह उसे धूमिल होती हुई नज़र आने लगी।

माँ की बातें जैसे ही खत्म हुईं, नितिन ने तिलमिलाकर फोन रख दिया। एक भद्दी गाली उसके मुँह से लड़के के बाप के लिए निकली। उसने कुछ गुस्से से सिगरेट जलाई और धीरे-धीरे लंबे कश खींचने लगा।  उसे महसूस हुआ कि यदि उसकी पिछली नौकरी न छूटी होती तो शायद आज स्थिति कुछ और होती। अब नितिन अपनी बात रखता भी तो उसे तानों से चुप करा दिया जाता।

उसका वापस अपना जीवन पटरी पर लाना, खुद की एक टैक्सी कर लेना, किसी को दिखाई नहीं देता।

सिगरेट खिड़की से बाहर फेंक, नितिन ने अपने वॉलेट की जेब से अपनी पिछली कंपनी वाला ई-कार्ड निकाला। उस  पर यूं हाथ फिराया जैसे अपने पुराने दिनों को सहला रहा हो, वह दिन जो उससे छीने जा चुके हैं, उनपर अपना अधिकार दुबारा इख्तियार कर रहा हो।

वह खुद में ही गुम था कि खिड़की पर किसी ने दस्तक दी।।  नितिन लोगों को इतना तो पढ़ना सीख गया था कि वह उन दोनों के बीच के रिश्ते को भांप सके, दोनों की शादी को ज्यादा समय नहीं हुआ लगता  था पर लड़की की आँखों में एक मरे हुए रिश्ते को खीचने का बोझ जीवित था। 

उसने खिड़की थोड़ी और नीचे की तो उस आदमी ने रोबीली आवाज़ में पूछा-– “कालिंदी कुञ्ज जाना है, चलोगे?

“बैठो।”

वह दोनों गाड़ी में बैठ गए। नितिन ने पहले ही उन्हे देख सुनिश्चित कर लिया था कि वो कितने भीगे हैं और गाड़ी उनके बैठने से कितनी खराब हो सकती है।

जहां उन्हें जाना था, वह जगह ज्यादा दूर नहीं थी।

नितिन की टैक्सी में भिन्न-भिन्न प्रकार के लोग बैठते हैं लेकिन इतनी अलग-अलग तरह के लोगों में भी एक बात समान है कि हर सवारी मुनासिब समय से जल्दी अपने गंतव्य पर पहुँचना चाहती है।

“आर यू हैप्पी नाउ? आफ्टर इन्सल्टिंग मी इनफ्रंट ऑफ सो मैनी पीपल?”

‘मैनी पीपल? द’टस माई पेरेंट्स, माई फॅमिली यू आर टॉकिंग अबाउट। अभी ये बात करना जरूरी है? घर जाकर भी तो डिस्कस कर सकते हैं। ”

“घर जाकर क्या होगा? यू हैव नो आइडिया।“ उस आदमी ने यह कहते हुए नितिन की ओर देखा और इतमीनान कर लिया कि नितिन अंग्रेजी नहीं समझता। उसने अपनी बात अंग्रेजी में जारी रखी, “यू बिच। यू हैव स्टार्टेड अर्निंग मोर देन मी सो यू थिंक यू आर अबव मी? आई शुड नॉट हैव अलाउड यू टू वर्क इन द फर्स्ट प्लेस।”

उसकी आवाज़ द्वेष से लबालब थी और जरूर जहर की तरह उस लड़की के भीतर उतरी होगी, जिसने उसे भीतर से पूरी तरह झुलसा दिया होगा। वह ज़रा धीमी आवाज़ में बोली “व्हाट आर यू सेइंग? व्हाट अबाउट ऑल दोस टॉक्स अबाउट इकुएल्टी एण्ड एव्रीथिंग?” फिर जैसे उसने किसी तरह खुद को थामा और बोली, “लेट्स नोट क्रीए ट अ सीन हियर।“

सीन! हम हमेशा ‘सीन’ कहाँ ‘क्रीएट’ हो रहा है, इसकी चिंता में रहते हैं। भले ही ‘सीन’ में कितना भी घिनौना सच उबल रहा हो। इस से परे हमारा वास्ता होता है केवल इस बात से कि कौन यह सीन करते हुए हमे देख रहा है, क्या सोच रहा है!

उस लड़के का वही बर्ताव कायम था। उसने उसी लहज़े में कहा “यू स्लट। डॉन्ट टेल मी व्हाट टू डू।

फिर एक गहरी चुप्पी गाड़ी में गहरा गई।

नितिन यूँ ही गाड़ी चलाता रहा, जैसे उसने कुछ न देखा, न सुना हो। 

उनके उतरने की जगह आ गई। वह आदमी तेजी से उतर पैरों से जमीन ठोकता हुआ चला गया। वह लड़की ज़रा एक मिनट ठहरी, जैसे किसी बड़ी क़यामत के लिए खुद को तैयार कर रही हो। उसने अपने बैग से बटुआ निकला और नितिन को किराया चुकाया। फिर बिना नितिन को देखे ही उतरी और बड़े धीमें कदमों से आगे  बढ़ गई।

नितिन काफी देर तक वहीं खड़ा रहा। फिर वह पास वाले स्टैन्ड पर गाड़ी लेकर पहुच गया और एक सिगरेट जला ली। जो कुछ घटित हुआ वह अपने साथ एक बिजली लेके आया था, जो नितिन के भीतर कौंध रही थी। एक क्षणिक चिंगारी में भी कितनी ताकत होती है, यह उसने आज जाना। धीरे-धीरे अपनी सिगरेटे ख़त्म कर उसने अपनी पत्नी को फोन किया।

“नीतू की शादी हम अभी नहीं करेंगे। अभी वो पढ़ेगी और पहले अपना साल खत्म करेगी।”

-जूही विजय
 ई-मेल
: juhiwrites1@gmail.com

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