हिंदी का पौधा दक्षिणवालों ने त्याग से सींचा है। - शंकरराव कप्पीकेरी

कैसी लाचारी | हास्य-व्यंग्य (काव्य)

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रचनाकार: अश्वघोष

हाँ! यह कैसी लाचारी
भेड़ है जनता बेचारी
सहना इसकी आदत है--
मुड़ती वहाँ, जहाँ जाती!

अनुशासन में पलती है,
झुंड बनाकर चलती है,
गड्डा है या खाई है--
इसको नजर नहीं आती!

आखिर यह कब चेतेगी,
और लीक यह टूटेगी,
राजभवन कुरसी सत्ता
सब इसकी ही है थाती !

-अश्वघोष

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