महँगा सौदा
बचपन खोकर
मिली जवानी।
धरा सुदरी
श्रावण में पहने
हरी चूनरी।
घृणा, प्रेम में,
अवरोध बनी क्या?
कोई भी भाषा।
कोई भी रात
इतनी काली नहीं--
सूर्य न देखे।
उम्र के साथ
एक एक टूटते
जीवन भ्रम।
- डॉ. भगवतशरण अग्रवाल
[सबरस हाइकु काव्य, साहित्य भारती प्रकाशन, अहमदाबाद]