उर्दू जबान ब्रजभाषा से निकली है। - मुहम्मद हुसैन 'आजाद'।

टूट कर बिखरे हुए... (काव्य)

Print this

Author: ज़फ़रुद्दीन ज़फ़र

टूट कर बिखरे हुए इंसान कहां जाएंगे
दूर तक सन्नाटा है नादान कहां जाएंगे

रिश्ते जो ख़ाक़ हुए नफ़रत की आग में
अपनों में रहने के अरमान कहां जाएंगे

छप्परों में सोते हैं आराम करने दीजिए
तेज तपती धूप में मेहमान कहां जाएंगे

हो सके तो पहले कड़वाहट निकालिए
सोच लेंगे कल के फरमान कहां जाएंगे

मिट जाएं मुल्क पर अलग बात है मगर
छोड़ कर प्यारा हिन्दुस्तान कहां जाएंगे

कलियुग है शहंशाह करने लगा फैसला
ये राम कहां जाएंगे रहमान कहां जाएंगे

माना दीवारों से सारी क़िलेबन्दी हो गई
अब मेरे शहर के निगेहबान कहां जाएंगे

मज़हब बना के तुमने सरहद तो बना ली
मगर बूढ़े परिंदों के मेजबान कहां जाएंगे

जब ख़ुदा के घर जाएं, तिरंगा लपेट देना
ज़फ़र मरकर बिना पहचान कहां जाएंगे

-ज़फ़रुद्दीन ज़फ़र
 एफ-413,
 कड़कड़डूमा कोर्ट,
 दिल्ली -32
 ई-मेल : zzafar08@gmail.com

Back

 
Post Comment
 
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश