उर्दू जबान ब्रजभाषा से निकली है। - मुहम्मद हुसैन 'आजाद'।

मेरे बच्चे तुझे भेजा था  (काव्य)

Print this

रचनाकार: अलका जैन

मेरे बच्चे तुझे भेजा था पढ़ने के लिए,
वैसे ये ज़िन्दगी काफी नहीं लड़ने के लिए।
तेरे नारों में बहुत जोश, बहुत ताकत है,
पर समझ की, क्या ज़रुरत नहीं, बढ़ने के लिए?

मैंने चाहा तू किसी दिन किताबों में झांके,
अपने गौरवमय इतिहास से दुनिया आंके।
बेड़ियां हमने काटी ज्ञान, शान और संयम से,
तुमने गढ़ ली खुद अपने लिए, कुंठा की सलाखें।

जिसने मारा सबको, उसकी फांसी गुनाह कैसे?
हिन्दू हो या मुस्लमान- आतंकी को पनाह कैसे?
इतने आवेश में तुम देश के रखवाले हो,
तुम्हे फिर तोड़- फोड़ और लूटमार की चाह कैसे?

लोग पूछेंगे आखिर क्या सबक सिखलाया था?
पिता जब छोड़ने कॉलेज में तुमको आया था।
माँ ने बक्से में कलम की जगह छुरी दी थी,
या तू खुद रेतकर उसका कलेजा लाया था?

--अलका जैन
ई-मेल: alka28jain@gmail.com

 

Back

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें