जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।

टुकड़े-टुकड़े दिन बीता (काव्य)

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रचनाकार: मीनाकुमारी

Meenakumari

टुकड़े-टुकड़े दिन बीता,
धज्जी-धज्जी रात मिली।
जिसका जितना आंचल था,
उतनी ही सौग़ात मिली।।

जब चाहा दिल को समझें,
हंसने की आवाज़ सुनी।
जैसे कोई कहता हो, लो
फिर तुमको अब मात मिली।।

बातें कैसी ? घातें क्या ?
चलते रहना आठ पहर।
दिल-सा साथी जब पाया,
बेचैनी भी साथ मिली।।

--मीनाकुमारी

*मीना कुमारी अपनी दर्द भरी आवाज़ और भावनात्मक अभिनय के लिए प्रसिद्ध रही हैं। 'साहिब बीबी और ग़ुलाम', 'पाकीज़ा', 'परिणीता', 'बहू बेगम' और 'मेरे अपने' जैसी फिल्में किसे याद न होंगी?  मीनाकुमारी लिखती भी थीं। 

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