सरकारी कार्यालय में
नौकरी मांगने पहुँचा
तो अधिकारी ने पूछा-
"क्या किया है?"
मैंने कहा- "एम.ए."
वो बोला- "किस में?"
मैंने गर्व से कहा- "हिन्दी में।"
उसने नाक सिकोंड़ी
"अच्छा... हिन्दी में एम.ए. हो!
बड़े बेशर्म हो
अभी तक ज़िन्दा हो!
तुमसे तो
वो स्कूल का लड़का ही अच्छा था
जो ज़रा-सी हिन्दी बोलने के कारण
इतना अपमानित हुआ
कि उसने आत्म-हत्या कर ली,
अरे!
इस देश के बारे में कुछ सोचो
नौकरी मांगने आए हो,
जाओ भैया!
कहीं कुआँ या खाई खोजो।"
मैंने कहा-
"हिन्दुस्तान में रहते
हिन्दी का विरोध
हिन्दी के प्रति
इतना प्रतिशोध?"
वो बोला-
"यह हिन्दुस्तान नहीं
इंडिया है,
और हिन्दी
सुहागिन भारत के माथे की
उजड़ी हुई बिन्दिया है।
तुम्हारे ये हिन्दी के ठेकेदार
हर वर्ष
हिन्दी-दिवस तो मनाते हैं
पर रोज़ होती हिन्दी-हत्या को
जल्दी भूल जाते हैं।"
--अरुण जैमिनी