विदेशी भाषा के शब्द, उसके भाव तथा दृष्टांत हमारे हृदय पर वह प्रभाव नहीं डाल सकते जो मातृभाषा के चिरपरिचित तथा हृदयग्राही वाक्य। - मन्नन द्विवेदी।

क्षणिकाएँ  (काव्य)

Print this

रचनाकार: कोमल मेहंदीरत्ता

विडंबना


इक अदना-सा मोबाइल
कुछ हजार या
कुछेक का, लाख़ का भी मोबाइल
कभी दूर के रिश्तों को जोड़ता था
आज
पास के रिश्तों को ही तोड़ता है मोबाइल


#

 

दिखावे की दुनिया


हमारे रूतबे का प्रतीक : सड़कों पर दौड़ती-चमकती गाडियाँ
घंटो जाम में खड़ी है अपने एक अदद मालिक और टोपी धारी शॉफर के साथ ।
बड़े-बड़े शहरों की लगातार छोटी होती जाती सड़कें भी बेचारी क्या करें?
हाय! ये दिखावे की दुनिया, ये होड़ा-होड़ी।

- कोमल मेहंदीरत्ता
komalmendiratta@hotmail.com

Back

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें