सबसे पहले मेरे घर का अंडे जैसा था आकार तब मैं यही समझती थी बस इतना-साही है संसार। फिर मेरा घर बना घोंसला सूखे तिनकों से तैयार तब मैं यही समझती थी बस इतना-सा ही है संसार।
फिर मैं निकल गई शाखों पर हरी-भरी थीं जो सुकुमार तब मैं यही समझती थी बस इतना-सा ही है संसार।
आखिर जब मैं आसमान में उड़ी दूर तक पंख पसार तभी समझ में मेरी आया बहुत बड़ा है यह संसार।
- निरंकार देव 'सेवक' |