देखा पूरब में आज सुबह, एक नई रोशनी फूटी थी। एक नई किरन, ले नया संदेशा, अग्निबान-सी छूटी थी॥
एक नई हवा ले नया राग, कुछ गुन-गुन करती आती थी। आज़ाद परिन्दों की टोली, एक नई दिशा में जाती थी॥
एक नई कली चटकी इस दिन, रौनक उपवन में आई थी। एक नया जोश, एक नई ताज़गी, हर चेहरे पर छाई थी॥
नेताजी का था जन्मदिवस, उल्लास न आज समाता था। सिंगापुर का कोना-कोना, मस्ती में भीगा जाता था।
हर गली, हाट, चौराहे पर, जनता ने द्वार सजाए थे। हर घर में मंगलाचार खुशी के, बांटे गए बधाए थे॥
पंजाबी वीर रमणियों ने, बदले सलवार पुराने थे। थे नए दुपट्टे, नई खुशी में, गये नये तराने थे॥
वे गोल बांधकर बैठ गईं, ढोलक-मंजीर बजाती थीं। हीर-रांझा को छोड़ आज, वे गीत पठानी गाती थीं।
गुजराती बहनें खड़ी हुईं, गरबा की नई तैयारी में। मानो वसन्त ही आया हो, सिंगापुर की फुलवारी में॥
महाराष्ट्र-नन्दिनी बहनों ने, इकतारा आज बजाया था। स्वामी समर्थ के शब्दों को, गीतों में गति से गाया था॥
वे बंगवासिनी, वीर-बहूटी, फूली नहीं समाती थीं। अंचल गर्दन में डाल, इष्ट के सम्मुख शीश झुकाती थीं-
"प्यारा सुभाष चिरंजीवी हो, हो जन्मभूमि, जननी स्वतंत्र ! मां कात्यायिनि ऐसा वर दो, भारत में फैले प्रजातंत्र !!"
हर कण्ठ-कण्ठ से शब्द यही, सर्वत्र सुनाई देते थे। सिंगापुर के नर-नारि आज, उल्लसित दिखाई देते थे॥
- गोपालप्रसाद व्यास
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