प्राचीन  काल से ही ब्रज क्षेत्र में देवाधिदेव इन्द्र की पूजा की जाती थी। लोगों  की मान्यता थी कि देवराज इन्द्र समस्त मानव जाति, प्राणियों, जीव-जंतुओं को  जीवन दान देते हैं और उन्हें तृप्त करने के लिए वर्षा भी करते हैं। लोग  साल में एक दिन इंद्र देव की बड़े श्रद्धा भाव से पूजा करते थे। वे विभिन्न  प्रकार के व्यंजनों एवं पकवानों से उनकी पूजा करना अपना कत्र्तव्य समझते  थे।  उनका विश्वास था कि यदि कोई इन्द्र देव की पूजा नहीं करेगा तो उसका  कल्याण नहीं होगा। यह भय उन्हें पूजा के प्रति श्रद्धा और भक्ति से बांधे  रखता था। एक बार देवराज इन्द्र को इस बात का बहुत अभिमान हो गया कि लोग  उनसे बहुत अधिक डरते हैं। त्रिकालदर्शी भगवान को अभिमान पसंद नहीं है। 
 
 श्री कृष्ण भगवान ने नंद बाबा को कहा कि वन और पर्वत हमारे घर हैं।   गिरिराज गोवर्धन की छत्रछाया में उनका पशुधन चरता है, उनसे सभी को  वनस्पतियां और छाया मिलती है। गोवर्धन महाराज सभी के देव,  हमारे कुलदेवता  और रक्षक हैं  इसलिए सभी को  गिरिराज गोवर्धन की पूजा करनी चाहिए। नंद बाबा  की आज्ञा से सभी ने जो सामान इन्द्र देव की पूजा के लिए तैयार किया था उसी  से गोवर्धन पर्वत की पूजा करने के लिए तैयारी कर ली।  
 
 सभी ब्रजवासियों ने नंद बाबा  के साथ विधि-विधान से खीर मालपुए, हलवा,  पूरी, दूध, दही के छत्तीस प्रकार के व्यंजन बनाकर बड़ी धूमधाम के साथ  गिरीराज गोवर्धन की पूजा की।  भगवान की यह अद्भुत लीला तो देखते ही बनती थी  क्योंकि एक ओर तो वह ग्वाल बालों के साथ थे तथा दूसरी ओर साक्षात गिरिराज  के  रूप में भोग ग्रहण कर रहे थे। सभी ने बड़े आनंद से गिरिराज भगवान का  प्रसाद खाया तथा जो बचा उसे सभी में बांटा। 
 
 देवइन्द्र को जब इस बात का पता चला तो उसे बड़ा क्रोध आया। उसने गोकुल पर  इतनी वर्षा की कि चारों तरफ जल थल हो गया। भगवान श्री कृष्ण ने तब  गिरिराज  पर्वत को उंगुली पर उठाकर सभी गोकुलवासियों की रक्षा की। जब इन्द्र को  वास्तविकता का पता चला तो उन्होंने भगवान से क्षमा याचना की। 
 
 सभी गोकुलवासी घर वापस आए तो जो भी सामान घरों में था उससे खट्टे मीठे  व्यंजन तैयार किए और अन्नकूट महोत्सव मनाया गया। वह तैयार किए प्रसाद 56  भोगों के नाम से प्रसिद्ध हुए। तब से हर साल देश भर में अन्नकूट महोत्सव   मनाया जाता है। गोबर से गोवर्धन की आकृति बनाकर उस पर सींकों से रूई  लगाकर  पेड़ आदि बनाकर दीपक जलाकर खील, बताशे, दूध, दही, शहद आदि चढ़ाकर  पूजा की  जाती है तथा 56 भोग लगाकर प्रसाद वितरित किया जाता है।