
एक अंधे व्यक्ति को हाथ में जलती लालटेन लिए चलता देख, कुछ शरारती लोगों ने हँसते हुए कहा—“अरे बाबा! तुम्हें तो कुछ दिखाई ही नहीं देता, फिर यह दीया लेकर क्यों घूम रहे हो?”
अंधे व्यक्ति ने शांत स्वर में उत्तर दिया—“यह दीया मेरे लिए नहीं है। यह तुम्हारे जैसे देखने-वाले लोगों के लिए है, ताकि अंधेरे में मुझसे टकराकर तुम्हें चोट न लग जाए।”
उसकी निस्वार्थ सोच सुनकर कई लोग भावुक हो उठे और सम्मान के साथ उसके चरण छूने लगे।
[भारत-दर्शन संकलन]