यहाँ मुक्तिबोध के कुछ कवितांश प्रकाशित किए गए हैं। हमें विश्वास है पाठकों को रूचिकर व पठनीय लगेंगे।
ओ सूर्य, तुझ तक पहुँचने की मूर्खता करना नहीं मैं चाहता ( मर जाऊँगा ) बस, इसलिए उसके विरुद्ध प्रतिक्रिया के रूप में मैं क्यों न चमगादड बनूं व धरित्री की ओर मुँह कर पैर तेरे ओर करता लटकता ही रहूँ चूंकि हे मार्तण्ड तुझ तक पहुँचना बिलकुल असम्भव है इसलिए अपमान करना सहज है वह आत्मसम्भव
[सम्भावित रचनाकाल 1959-60]
साभार - मुक्तिबोध रचनावली दो, संपादक-नेमिचंद्र जैन
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