डा अरूण गाँधी से बातचीत
डरबन दक्षिण अफ्रीका में जन्में, डा अरूण गाँधी, मोहनदास कर्मचँद ‘महात्मा' गाँधी के पाँचवें पौत्र हैं। दक्षिण अफ्रीका में अपने बचपन में वे अनेक बार हिंसा से साक्षात्कार कर चुके हैं। दक्षिण अफ्रीका के श्वेत और अश्वेत दोनों समुदायों की हिंसा का सामना करतेट्-करते बालक अरूण हिंसा का जवाब हिंसा से देने का मन बनाने लगा था। यही वह समय था जब अरून के माता-पिता ने उन्हें अपने दादा ‘महात्मा गांधी' के पास अहिंसा की शिक्षा लेने के लिए भारत भेजने का निश्चय किया। डा गाँधी आठ पुस्तकें और सैंकड़ों लेख लिख चुके हैं। भारत-दर्शन के संपादक रोहित कुमार ‘हैप्पी' से हुई बातचीत के मुख्य अंशः
आप गाँधी और गाँधीवाद को आज कहाँ देखते हैं?
गाँधीवाद तो मैं समझता हूँ कि अमर रहेगा, हमेशा के लिए। लोग इसको अपनाएंगे, लोग मारपीट और हिंसा से बहुत तंग आ चुके हैं और अब उन्हें शान्ति चाहिए। बापू जी ने जो हमें सिखाया था वो सिर्फ विश्व शान्ति नहीं बल्कि आंतरिक शान्ति भी थी। और एक-दूसरे के साथ हम कैसे अच्छी तरह रहें और कैसे अच्छे संबंध बनाए, यह सिखाया था। गाँधीवाद एक पूर्ण दर्शन है, केवल विश्व शान्ति नहीं।
आज गाँधी के नाम का जो दुरूपयोग हो रहा है, उसके बारे में आप क्या सोचते हैं?
ये बुरी बात है लेकिन कर भी क्या सकते हैं! बापू जी इतने बड़े थे और सारी दुनिया अपनायी थी उन्होंनें। कुछ लोग उनके नाम का दुरूपयोग कर रहे हैं, हम तो क्या कर सकेंगे। ये तो उन्हीं लोगों को स्वयं सोचना चाहिए और लोगों को ही यह बंद करवाना चाहिए।
गाँधी के गृह-राज्य गुजरात जो आज एक दंगाग्रस्त राज्य कहा जाने लगा है के बारे में आप क्या सोचते हैं?
मैंने जब वो देखा-सुना तो मैं इतना हैरान हो गया कि मैं शर्मिंदा हूँ कि मैं गुजराती हूँ और मेरे गुजराती भाईयों ने वहाँ जो इस तरह की दंगा मस्ती की है। हमारा सिर्फ गाँधी से ही संबंध नहीं है बल्कि इससे पहले भी गुजरात में बहुत से लोग हुए हैं जिन्हें हम संत कह सकते हैं जिन्होनें हमें शान्ति के बारे में बहुत कुछ सिखाया था। ऐसी परम्परा वाले गुजरात में हम यदि ऐसे काम करें तो बड़े शर्म की बात है।
आज जब गाँधीवाद दूसरे देशों में अपनाया जा रहा है, क्या कारण है कि भारत में गाँधीवाद कम होता जा रहा है?
मैं यह नहीं कहूंगा कि गाँधीवाद भारत में कम होता जा रहा है। भारत में में बहुत लोग गाँधीवाद का अभ्यास करते हैं। हाँ, भारत के उच्चवर्गीय लोग, मध्यम उच्चवर्गीय, राजनीतिज्ञ और शहरी लोगों में गाँधीवाद कम हो गया है। और मैं समझता हूँ कि गाँधी जी ये बात जानते थे, इसीलिए उन्होंने कहा था कि जब गाँधीवाद दूसरे देशों से पाश्चात्य आवरण में भारत लौटेगा तभी हिन्दोस्तान इसे पूर्णतया अपनाएगा अन्यथा नहीं। मुझे लगता है कि यही अब होने वाला है। जब बाहर के देशों में बापूजी की नीतियाँ मान्यता प्राप्त करके भारत लौटेंगी तो हिन्दोस्तानी लोग उसे अपनाएंगे।
इस वर्ष 9 जनवरी को प्रवासी दिवस के अवसर पर एक भारतीय मूल के नोबल पुरस्कार विजेता लेखक ने कहा कि गाँधीवाद दक्षिण अफ्रीका में असफल रहे और भारत लौट आए?
मेरा ख्याल है कि यह तो अपने-अपने विचार है। कुछ लोगों का तो यह भी कहना है कि गाँधी अपने जीवन में ही असफल रहे क्योंकि हिन्दोस्तान को आज़ादी मिली तो कितना दंगा हुआ! लेकिन जो लोग अच्छी तरह समझते हैं, वे जानते हैं कि बापूजी ने क्या किया और वे क्या करना चाहते थे। गाँधी में इतना प्रेमभाव था, इसीलिए आज तक लोग उन्हें नहीं भूले और इतना आदर और प्रेम देते हैं।
आप आज अमरीका में बसे हुए हैं, बहुत से लोग प्रश्न करते हैं कि गाँधी का पौत्र अमरीका में क्यों रह रहा है?
मैं वहाँ बसने के इरादे से नहीं बल्कि नस्ल-भेद, रंग-भेद और जातीय शोषण का अध्ययन करने के लिए वहाँ गया। और वहाँ जाकर मैंने देखा कि बहुत से लोगों में बापू जी के बारे में जानने की बहुत तमन्ना थी, तो मैनें सोचा कि यदि लोगों की इतनी रूचि है तो फिर वहीं रहकर उन्हें अच्छी तरह समझायें तो ठीक होगा। इसी उद्देश्य को लेकर मैंने 1991 में वहाँ एक सँस्था आरम्भ की, ‘एम के गाँधी इंस्टीट्यूट फॉर नान वायलैंस' के नाम से। इस इंस्टीट्यूट के माध्यम से हम काफी लोगों को शिक्षा दे रहे हैं। और मैं ये भी सोचता हूँ कि यूनाइटेड स्टेट्स का इतना इंफ्लूएंस है विश्वभर में कि अगर वहाँ जो परिवर्तन हो जाए तो सारे विश्व में परिवर्तन होना भी संभव है।
[पुन: प्रकाशित]
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Dr. Arun Gandhi, grandson of Mahatma Gandhi and founder of the M.K. Gandhi Institute for Nonviolence shares his views on Gandhism with Bharat-Darshan.
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