मुस्लिम शासन में हिंदी फारसी के साथ-साथ चलती रही पर कंपनी सरकार ने एक ओर फारसी पर हाथ साफ किया तो दूसरी ओर हिंदी पर। - चंद्रबली पांडेय।

विजय कुमार सिंघल | Profile & Collections

विजय कुमार सिंघल का नाम हिंदी ग़ज़ल पाठको के लिए चिरपरिचित है। आपका जन्म 25 फरवरी 1946 को भिवानी, हरियाणा में हुआ। अँग्रेज़ी साहित्य में एम. ए. करने के पश्चात् आप  हरियाणा के कैथल शहर में अँग्रेज़ी के प्राध्यापक रहे।

हिंदी ग़ज़ल लेखन में आपका विशिष्ट योगदान रहा है। आपकी हिंदी गज़लें सारिका, नवभारत टाइम्स, दैनिक ट्रिब्यून, राष्ट्रिय सहारा, नया पथ, जतन, उद्भावना, जागृति, विश्वमानव, पल-प्रतिपल, समकालीन घोषणा-पत्र, अक्स, समांतर, काव्या इत्यादि पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं।

प्रकाशित ग़ज़ल-संग्रहों में 'धूप हमारे हिस्से की (1983), बर्फ से ढका ज्वालामुखी (1989), सात समंदर प्यासे (1990), धुंध से गुज़रते हुए (1992)' मुख्य हैं।

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A biography of Mr V.K Singhal in Hind

विजय कुमार सिंघल 's Collection

Total Records: 6

अपनी छत को | ग़ज़ल

अपनी छत को उनके महलों की मीनारें निगल गयीं धूप हमारे हिस्से की ऊँची  दीवारें निगल गयीं

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झेप अपनी मिटाने निकले हैं

झेप अपनी मिटाने निकले हैंफिर किसी को चिढ़ाने निकले हैं

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दर्द की सारी लकीरों.... | ग़ज़ल 

दर्द की सारी लकीरों को छुपाया जाएगाउनकी ख़ातिर आज हर चेहरा सजाया जाएगा

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इसको ख़ुदा बनाकर | ग़ज़ल

इसको ख़ुदा बनाकर उसको खुदा बनाकर क्यों लोग चल रहे हैं बैसाखियां लगाकर

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बचकर रहना इस दुनिया के लोगों की परछाई से

बचकर रहना इस दुनिया के लोगों की परछाई से इस दुनिया के लोग बना लेते हैं परबत राई से।

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जंगल-जंगल ढूँढ रहा है | ग़ज़ल

जंगल-जंगल ढूँढ रहा है मृग अपनी कस्तूरी कोकितना मुश्किल है तय करना खुद से खुद की दूरी को

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