आचार्य रामचंद्र वर्मा

आचार्य रामचंद्र वर्मा का जन्म 8 जनवरी 1890 को उत्तर प्रदेश के काशी (वर्तमान वाराणसी) में हुआ था। उनके पिता का नाम दीवान परमेश्वरी दास था। उनकी औपचारिक शिक्षा सीमित रही, किंतु स्वाध्याय एवं विद्वानों के सान्निध्य में रहकर उन्होंने हिंदी के साथ-साथ उर्दू, फारसी, मराठी, बंगला, गुजराती और अंग्रेजी जैसी भाषाओं का भी अध्ययन किया। अपने गहन भाषाज्ञान और साहित्यिक योगदान से वे हिंदी जगत में विशिष्ट स्थान बनाने में सफल हुए।

\r\n

निधन: वर्ष 1969 में आचार्य रामचंद्र वर्मा का निधन हो गया। 

प्रमुख कृतियाँ
कोश निर्माण और शब्द कार्य
हिंदी शब्दसागर (10 खंड) – नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी द्वारा प्रकाशित; वर्मा जी ने सहायक संपादक के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
संक्षिप्त हिंदी शब्दसागर – इसका सम्पादन भी उन्होंने किया।
मानक हिंदी कोश (5 खंड) – हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा प्रकाशित; इसे आधुनिक हिंदी का सबसे विश्वसनीय कोश माना गया।
प्रामाणिक हिंदी कोश – भाषा और प्रयोग की शुद्धता पर आधारित।
उर्दू-हिंदी कोश – उर्दू से हिंदी में शब्दों के समन्वय का एक अद्वितीय प्रयास।

व्याकरण एवं भाषा विषयक ग्रंथ
अच्छी हिन्दी – शुद्ध और मानक हिंदी प्रयोग की दिशा में मार्गदर्शक।
मानक हिन्दी व्याकरण / हिन्दी प्रयोग – हिंदी की व्याकरणिक शुद्धता पर केन्द्रित ग्रंथ।

अनुवाद कार्य
छत्रसाल (मराठी से अनुवाद)
ज्ञानेश्वरी (मराठी की प्रसिद्ध गीता-टीका का अनुवाद)
अन्य कई भाषाओं के ग्रंथों का हिंदी रूपांतर।

साहित्य पर प्रभाव
हिंदी भाषा का मानकीकरण

वर्मा जी ने कोश निर्माण और व्याकरण रचना के माध्यम से हिंदी भाषा को एक सुसंगत, मानकीकृत और व्यवस्थित स्वरूप देने का कार्य किया।
उनके बनाए शब्दकोश आज भी हिंदी के छात्रों, शोधकर्ताओं और लेखकों के लिए आधारभूत संदर्भ ग्रंथ माने जाते हैं।

पत्रकारिता और भाषा प्रचार
\"हिंदी केसरी\" और \"बिहार बंधु\" जैसी पत्रिकाओं में संपादक के रूप में कार्य करते हुए उन्होंने हिंदी जागरण और भाषा चेतना का प्रसार किया।

\r\n

भाषाई समन्वय
उन्होंने हिंदी, उर्दू, फारसी, मराठी, बंगला, गुजराती और अंग्रेजी जैसी भाषाओं के बीच सेतु का काम किया।
उनके उर्दू-हिंदी कोश और अनुवाद कार्य ने हिंदी को बहुभाषी संवाद का माध्यम बनाया।
राष्ट्रीय भाषा आंदोलन में योगदान

उन्होंने हिंदी को राजभाषा बनाने के आंदोलन में सक्रिय योगदान दिया।
उनके कार्यों ने यह सिद्ध किया कि हिंदी न केवल साहित्य की भाषा है, बल्कि प्रशासन, शिक्षा और विज्ञान की भाषा भी बन सकती है।

\r\n

सम्मान और मान्यता 
उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया, जो हिंदी भाषा और साहित्य में उनके योगदान की राष्ट्रीय मान्यता है।

आचार्य रामचंद्र वर्मा को हिंदी कोश और भाषा विज्ञान का आधार स्तंभ कहा जा सकता है। उन्होंने हिंदी को केवल साहित्य की भाषा से उठाकर वैज्ञानिक और मानकीकृत भाषा का रूप प्रदान किया।