गिरीश पंकज

गिरीश पंकज हिंदी साहित्य के समकालीन दौर के एक अत्यंत सक्रिय, बहुचर्चित और प्रतिष्ठित साहित्यकार हैं। वे कवि, उपन्यासकार, पत्रकार, संपादक और विशेष रूप से व्यंग्य विधा के सशक्त हस्ताक्षर के रूप में जाने जाते हैं। पिछले चार दशकों से अधिक समय से वे साहित्य और पत्रकारिता—दोनों क्षेत्रों में निरंतर सक्रिय हैं।
उनका पूरा नाम गिरीशचंद्र उपाध्याय है। उनका जन्म 1 जनवरी 1957 में बनारस (वाराणसी) में हुआ। उनके पिता श्री कृष्णप्रसाद उपाध्याय तथा माता श्रीमती सावित्री देवी उपाध्याय थीं। यद्यपि जन्म बनारस में हुआ, पर उनकी सम्पूर्ण शिक्षा-दीक्षा छत्तीसगढ़ में संपन्न हुई और वहीं से उनका साहित्यिक व्यक्तित्व विकसित हुआ।
शिक्षा
गिरीश पंकज ने एम.ए. (हिंदी) — विश्वविद्यालय की प्रावीण्य सूची में प्रथम स्थान
लोक कला एवं संगीत में डिप्लोमा — प्रावीण्य सूची में स्थान
विक्रमशिला विद्यापीठ से डी.लिट. (डॉक्टरेट) जैसी उच्च शैक्षणिक उपलब्धियाँ अर्जित कीं।
साहित्यिक एवं प्रशासनिक दायित्व
वर्तमान में वे स्वतंत्र लेखक हैं तथा ‘सद्भावना दर्पण’ (भारतीय एवं विश्व साहित्य के अनुवाद और अनुसंधान पर केंद्रित पत्रिका) के संपादक हैं।
वे अनेक साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़े रहे हैं, जिनमें प्रमुख हैं—
प्रांतीय अध्यक्ष — छत्तीसगढ़ राष्ट्रभाषा प्रचार समिति
सचिव — हरिकन सेवक संघ, रायपुर
पूर्व सदस्य — हिंदी सलाहकार समिति, राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, नई दिल्ली
पूर्व सदस्य — हिंदी परामर्श मंडल, साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली (2009–2012)
पत्रकारिता का लंबा अनुभव
गिरीश पंकज का पत्रकारिता जीवन लगभग 45 वर्षों का है। उन्होंने विलासपुर टाइम्स, दैनिक नवभारत, दैनिक स्वदेश, राष्ट्रीय हिंदी मेल तथा दैनिक खबरगदर जैसे प्रतिष्ठित समाचार पत्रों में रिपोर्टर से लेकर संपादक तक की भूमिका निभाई। साहित्य और पत्रकारिता का यह संगम उनकी रचनाओं को सामाजिक यथार्थ से गहराई से जोड़ता है।
रचनात्मक अवदान
गिरीश पंकज की साहित्यिक सक्रियता अत्यंत व्यापक है। उनकी 100 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं,
जिनमें—12 उपन्यास, 30 से अधिक व्यंग्य-संग्रह, 4 कथा-संग्रह, 3 लघुकथा-संग्रह सम्मिलित हैं।
उपर्युक्त के अतिरिक्त बाल साहित्य में 2 गीत-संग्रह तथा अन्य विविध विषयक रचनाएँ भी शामिल हैं।
उनका चर्चित उपन्यास ‘एक गाय की आत्मकथा’ (तथा ‘माफिया’, ‘मीरा की आत्मकथा’ आदि) सामाजिक-राजनीतिक यथार्थ और व्यंग्यात्मक दृष्टि का उत्कृष्ट उदाहरण है।
अकादमिक
गिरीश पंकज के व्यंग्य साहित्य पर अब तक 22 से अधिक शोध-कार्य (पी.एच.डी. / लघुशोध) पूर्ण हो चुके हैं, जो उनकी रचनात्मक प्रासंगिकता और प्रभाव को रेखांकित करता है।
सम्मान एवं पुरस्कार
हिंदी व्यंग्य और साहित्य में अतुलनीय योगदान के लिए उन्हें अनेक राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक सम्मानों से सम्मानित किया गया है, जिनमें प्रमुख हैं—
व्यंग्यश्री सम्मान — हिंदी भवन, नई दिल्ली
अट्टहास युवा सम्मान — लखनऊ (2001)
सीतारानी स्मृति सम्मान — ‘माफिया’ उपन्यास हेतु (2005)
श्रीलाल शुक्ल (परिकल्पना) व्यंग्य सम्मान — लखनऊ (2011)
विदूषक सम्मान — जमशेदपुर (2014)
रामदास तिवारी सृजन सम्मान — समग्र व्यंग्य लेखन हेतु, रांची (2015)
अंगन उपन्यास सम्मान — गहमर (2015)
राष्ट्रभाषा गौरव सम्मान — संसद के केंद्रीय कक्ष में (2018)
साहित्य भूषण — उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ (₹2.25 लाख, 2022)
जमुनालाल कासार सम्मान, साकेत संत सम्मान, साहित्य साधना सम्मान (2022)
भिलाई वाणी सम्मान (2025) एवं अन्य अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कार।
साहित्यिक विशेषता
गिरीश पंकज का व्यंग्य केवल हास्य नहीं, बल्कि सामाजिक विवेक का सशक्त औज़ार है। वे मानवीय कमजोरियों, सत्ता-तंत्र, नैतिक पतन और सामाजिक विडंबनाओं को इस तरह उजागर करते हैं कि पाठक हँसते-हँसते भीतर से विचलित हो उठता है। यही गुण उन्हें समकालीन हिंदी व्यंग्य के शीर्ष रचनाकारों की श्रेणी में स्थापित करता है।
ई-मेल
girishpankaj1@gmail.com