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अनिल जोशी | Anil Joshi | Profile & Collections
अनिल कुमार शर्मा ‘जोशी' (साहित्यिक नाम : अनिल जोशी) को शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल के उपाध्यक्ष हैं।
अनिल कुमार शर्मा गृह मंत्रालय एवं तदुपरांत विदेश मंत्रालय, भारत सरकार के उच्चाधिकारी के रूप में विश्व के विभिन्न देशों में सेवारत रह चुके हैं। आपने लगभग 9 वर्षों तक ब्रिटेन तथा फीजी में राजनयिक के रूप में कार्य करते हुए हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार एवं विकास के क्षेत्र में असाधारण उपलब्धियां प्राप्त की हैं। भारतीय राजनय एवं विदेश नीति के अधिकारी विद्वान और प्रवासी साहित्य के गम्भीर अध्येता के रूप में आपकी पहचान सुस्थापित है। हिंदी अनुवाद, निबंध, लेख, नाटक, कविता समीक्षा, ब्लॉग लेखन आदि क्षेत्रों में भी आपका उल्लेखनीय कार्य रहा है। अनिल शर्मा ने केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो, राजभाषा विभाग आदि संस्थाओं में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
‘मोर्चे पर', ‘नींद कहां है' और ‘धरती एक पुल' (संपादन - ब्रिटेन के कवियों का संकलन) आपके चर्चित कविता संग्रह हैं। इनके अतिरिक्त ‘प्रवासी लेखन : नयी जमीन, नया आसमान' प्रवासी साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय कृति है।
अनिल जोशी | Anil Joshi 's Collection
Total Records: 8
हैरान परेशान, ये हिन्दोस्तान है
हैरान परेशान, ये हिन्दोस्तान है ये होंठ तो अपने हैं, पर किसकी जुबान है
क्या तुमने उसको देखा है
वो भटक रहा था यहाँ - वहाँढूंढा ना जाने कहाँ - कहाँजग चादर तान के सोता थापर उन आँखों में नींद कहाँ
भटका हुआ भविष्य
उसने मुझे जब हिन्दी में बात करते हुए सुना,तो गौर से देखाऔर अपने मित्र से कहा--'माई लेट ग्रैंडपा यूज्ड टु स्पीक इन दिस लैंग्वेज'इस भाषा के साथ मैं उसके लिए संग्रहालय की वस्तु की तरह विचित्र थाजैसेदीवार पर टंगा हुआ कोई चित्र था जिसे हार तो पहनाया जा सकता हैपरगले नहीं लगाया जा सकता।
घर
शाम होते ही वो कौन-से रास्ते हैं, जिन पर मैं चल पड़ता हूँ वो किसके पैरों के निशान हैं, जिनका मैं पीछा करता हूँ इन रास्तों पर कौन सी मादा महक है किन बिल्लियों की चीख की कोलाहल की प्रतिध्वनियां गूंजती है कानों में लौटते हुए रास्ते में पहचाने हुए यात्री ना सुखी, ना दुखी, ना प्रसन्न, ना उदास सिर्फ एक होने भर का भाव वाहनों से उतर अपने-अपने रास्ते पकड़ लेते हैं, किसका पीछा करते हुए आ गया हूँ मैं घर के दरवाजे पर खड़ा दस्तक देता हूँ एक लैंडस्केप को अपने विशिष्ट आकार और रंग से भरने के लिए।
रणनीति
छुपा लेता हूँअपने आक्रोश को नाखून मेंछुपा लेता हूँअपने विरोध को दांतों में बदल देता हूँअपमान को हँसी मेंआत्मसम्मान पर होने वाले हर प्रहार से सींचता हूँ जिजीविषा को नहीं! ना पोस्टर, ना नारे, ना इंकलाबमन के गहरे पोखर सेढूंढ कर लाता हूँ शब्द पकाता हूँ उसे भीतर की आंच पर बदलता हूँ कविता मेंलाकर रख देता हूँ मोर्चे पर
बेटी को उसके अठाहरवें जन्मदिन पर पत्र
आशा है तुम सकुशल होगीशुभकामनाएं और तुम्हारी भावी यात्रा के बारे में कुछ राय
जैसे मेरे हैं...
जैसे मेरे हैं, वैसे सबके हों प्रभुउसने सिर्फ आँखें नहीं दी,दृष्टि भी दी,चारों तरफ अंधकार हुआ,दे दिया ,ह्रदय में मणि का प्रकाश,सुरंग थी, खाईयां थी और अंधेरी सर्पीली घाटियां,तो मन में दे दिया,अनंत आकाश।