डॉ रमेश पोखरियाल निशंक

डॉ॰ रमेश पोखरियाल निशंक का जन्म 15 अगस्त 1959 को उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल (पिनानी) में हुआ था।

‘निशंक' देशभक्ति तथा प्रकृति पर कवितायें रचने का क्रम जारी रखे हुए हैं। सामाजिक कार्य, पठन-पाठन और लेखन इनकी जिन्दगी का अभिन्न अंग है। ‘निशंक' की प्रथम कृति उनका पहला देशभक्ति काव्य संग्रह ‘समर्पण' 1983 में प्रकाशित हुआ था। अब तक आपके 14 कविता संग्रह, 12 कहानी संग्रह, 12 उपन्यास, 2 पर्यटन ग्रन्थ, 6 बाल साहित्य, 2 व्यक्तित्व विकास सहित कुल 4 दर्जन से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।

डॉ॰ ‘निशंक' शिक्षक भी रहे और एक पत्रकार भी रहे हैं। ‘निशंक' ने 'दैनिक जागरण' से अपनी पत्रकारिता की शुरुआत की। कोटद्वार में हिमालयी सरोकारों पर आधारित पत्रिका 'नव राह व नव चेतना' निकाली और फिर 1986-87 में ‘सीमांत वार्ता' समाचार पत्र आरंभ किया।

डॉ॰ रमेश पोखरियाल ‘निशंक' की प्रथम कृति उनका पहला देशभक्ति से सराबोर काव्य संग्रह ‘समर्पण' 1983 में प्रकाशित हुआ था। कभी सरस्वती शिशु मंदिर उत्तरकाशी में एक युवा आचार्य के रूप में सेवाएँ दे चुके रमेश पोखरियाल, आज दशकों पश्चात डॉ. रमेश पोखरियाल 'निशंक' के रूप में केंद्र सरकार में शिक्षा मंत्री (केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री ) के रूप में देश की शिक्षा व्यवस्था की बागडोर संभाले हुए हैं। आप उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। 1991 में आपने एक विधायक के रूप में अपना राजनैतिक जीवन प्रारम्भ किया लेकिन इससे भी पहले आप साहित्य से जुड़े हुए थे।

कोई राजनीतिज्ञ लेखक भी हो या कहें कि कोई लेखक राजनेता बन गया हो, ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। भूतपूर्व प्रधान मंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह व अटलबिहारी वाजपेयी ने भी साहित्य सृजन किया।


मुख्य कृतियाँ

कविता संग्रह : समर्पण, नवांकुर, मुझे विधाता बनना है, तुम भी मेरे साथ चलो, देश हम जलने न देंगे, मातृभूमि के लिए, जीवन पथ में, कोई मुश्किल नहीं, प्रतीक्षा, ए वतन तेरे लिए, संघर्ष जारी है

कहानी संग्रह : रोशनी की एक किरण, बस एक ही इच्छा, क्या नहीं हो सकता, भीड़ साक्षी है, खड़े हुए प्रश्न, विपदा जीवित है, एक और कहानी, मेरे संकल्प, मील के पत्थर, टूटते दायरे, शिखरों के संघर्ष

उपन्यास : निशांत, मेजर निराला, बीरा, पहाड़ से ऊँचा, छूट गया पड़ाव, अपना पराया, पहाड़ से ऊँचा, पल्लवी, प्रतिज्ञा, भागोवाली,

बाल साहित्य : आओ सीखे कहानियों से, स्वामी विवेकानद जीवन माला

खंडकाव्य : प्रतिज्ञा

[भारत-दर्शन]