देशभाषा की उन्नति से ही देशोन्नति होती है। - सुधाकर द्विवेदी।

गोरख पाण्डेय

गोरख पाण्डेय (Gorakh Pandey) का जन्म 1945 के आसपास देवरिया (उत्तर प्रदेश) के एक गाँव में हुआ था। आपने साहित्यचार्य व दर्शनशास्त्र में एम.ए किया। पाण्डेय ने कुछ समय तक बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में अध्ययन किया लेकिन फिर वह दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय चले गए। 1969 में आप किसान आंदोलन से जुड़ गए और भोजपुरी में गीत लिखने आरंभ किए।

गोरख पाण्डेय का लेखन अद्वितीय है। उनकी एक कविता की बानगी देखिए--

'राजा बोला रात है,
रानी बोली रात है,
मंत्री बोला रात है,
संतरी बोला रात है,
--यह सुबह-सुबह की 
बात है।'

आपने कविता, वैचारिक लेख, नाटक विधाओं में सृजन किया है।

मुख्य कृतियाँ:

कविता : भोजपुरी के नौ गीत, जागते रहो सोने वलो, स्वर्ग से बिदाई, समय का पहिया, लोहा गरम हो गया है

वैचारिक गद्य : धर्म की मार्क्सवादी व्याख्या

निधन:
29 जनवरी 1989 को आपका निधन हो गया। उनका देहांत सामान्य नहीं था बल्कि 28 जनवरी, 1989 को जेएनयू, दिल्ली के झेलम हॉस्टल में उन्होंने आत्महत्या कर ली थी। उन्होंने एक चिठ्ठी लिख छोड़ी थी जिसमें लिखा था कि वह अपने बिगड़ते मानसिक स्वास्थ्य से थक चुके थे।

 

 

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तंत्र

राजा बोला रात है,
रानी बोली रात है,
मंत्री बोला रात है,
संतरी बोला रात है,
--यह सुबह-सुबह की
बात है।

-गोरख पाण्डेय

 

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सच्चाई

मेहनत से मिलती है
छिपाई जाती है स्वार्थ से
फिर, मेहनत से मिलती है

-गोरख पाण्डेय

 

 

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वे डरते हैं

किस चीज़ से डरते हैं वे
तमाम धन-दौलत
गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज के बावजूद?
वे डरते हैं
कि एक दिन
निहत्थे और ग़रीब लोग
उनसे डरना
बंद कर देंगे ।

-गोरख पाण्डेय
(रचनाकाल 1979)

 

[जागते रहो सोने वालो, राधाकृष्ण प्रकाशन, नई दिल्ली, 1983]


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समकालीन

कहीं चीख उठी है अभी 
कहीं नाच शुरू हुआ है अभी
कहीं बच्चा हुआ है अभी
कहीं फौजें चल पड़ी हैं अभी

-गोरख पांडेय 

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