हिंदी समस्त आर्यावर्त की भाषा है। - शारदाचरण मित्र।

संजय भारद्वाज

लेखक, कवि, नाटककार, संपादक, पत्रकार, कहानीकार, समीक्षक के रूप में हिंदी साहित्य की गत 37 वर्ष से यथाशक्ति सेवा।

सूत्र संचालक, निर्देशक, अभिनेता, व्याख्याता के रूप में दूरदर्शन, आकाशवाणी, रंगमंच तथा सामाजिक जीवन में सक्रिय।

समाजसेवा और राष्ट्रीय एकता के क्षेत्र में योगदान।

उल्लेखनीय

1) हिंदी आंदोलन परिवार पुणे के संस्थापक- अध्यक्ष। 1995 में स्थापित हिंदी आंदोलन परिवार ने हिंदी साहित्य, भाषा और संस्कृति के प्रचार में उल्लेखनीय काम किया है। संस्था स्थापना से अब तक अबाध रूप से प्रतिमाह एक साहित्यिक गोष्ठी करती है।

2) महाराष्ट्र सरकार की महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी के सदस्य। अकादमी के लिए विभिन्न कार्यक्रमों और संगोष्ठियों का संयोजन।

3) महाराष्ट्र सरकार के महाराष्ट्र राज्य पाठ्य पुस्तक निर्मिति महामंडल ( बालभारती) के हिंदी विषय के लिए कार्यसमूह के सदस्य। महामंडल पहली से बारहवीं तक के लिए हिंदी विषय की पुस्तकें निर्धारित करता है।

4) ‘हम लोग' के संपादक। पुणे के हिंदी में प्रकाशित प्रथम दीपावली अंक ‘अक्षर' का संपादन। ‘समिति संवाद' के 6 वर्ष अतिथि संपादक रहे।

5) निमंत्रित संचालक के रूप में दूरदर्शन के डी. डी. सह्याद्रि चैनल पर ‘साहित्य सरिता' कार्यक्रम के लिए विभिन्न क्षेत्रों में हिंदी के लिए काम कर रहे विद्वानों से साक्षात्कार की एक शृंखला।

 

प्रकाशित पुस्तकें 

1. एक भिखारिन की मौत (नाटक)
2. योंही (कविता संग्रह)
3. मैं नहीं लिखता कविता (कविता संग्रह)
4. चेहरे (कविता संग्रह)

 

शीघ्र प्रकाश्य

कविताओं के तीन संग्रह, ललित निबंधों का एक संग्रह, दार्शनिक-आध्यात्मिक आख्यान ‘संजय उवाच' का संकलन, कहानियों और लघुकथाओं का एक संग्रह। 


सम्मान व पुरस्कार

- हिन्दी साहित्य तथा रंगमंच के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए भारत की पूर्व राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभादेवी पाटील व श्री-श्री रविशंकर जी के हाथों ‘विश्व वागीश्वरी सम्मान'-2017

- ‘राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिये ‘हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग' द्वारा ज्ञानपीठ विजेता डॉ. निर्मल वर्मा के हाथों ‘सम्मेलन सम्मान' -2004

- श्रेष्ठ हिंदी साहित्य और समाज सेवा के लिए पद्मभूषण पं झाबरमल शर्मा राष्ट्रीय पुरस्कार (कोलकाता) -2008

- हिंदी साहित्य की सेवा के लिए महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा प्रचार समिति द्वारा ‘साहित्य सेवा सम्मान'-2007 तथा 2011

- हिंदी-उर्दू के बीच पुल का काम करने के लिए ‘अमीने- अदब' सम्मान- 2002

- भारतरत्न मौलाना अब्दुल कलाम आज़ाद फाउंडेशन द्वारा समाज सेवी कार्यों के लिए सम्मान -2010

- चासकर प्रतिष्ठानद्वारा लेखन विशिष्ठ योगदान के लिए नागरी सम्मान-2012

- ब्रह्म परिषद मुंबई द्वारा समाजरत्न- 2011 और 2016

- अखिल भारतीय वाल्मिकी समाज सेवा संघ द्वारा जीवन गौरव पुरस्कार - 2008

-- ब्रह्म परिषद मुंबई द्वारा सर्वश्रेष्ठ योगदान हेतु सम्मान-2015

- विभिन्न भारतीय भाषाओं के बीच सेतु का काम करने के लिए गुरुकुल प्रतिष्ठान, पुणे द्वारा अंतरभारती सम्मान'-2016

- कविता संग्रह ‘योंही' के लिए सोनइन्दर काव्य सम्मान-2015

- ‘एक भिखारिन की मौत' 35 वें महाराष्ट्र राज्य नाट्य समारोह में पुरस्कृत। अभिनय के लिये भी सम्मानित।

- विश्वविद्यालय स्तर पर ‘सर्वश्रेष्ठ नाटक' व ‘सर्वश्रेष्ठ अभिनेता' का सम्मान।

- अकादमिक शिक्षा में विद्यालय में सर्वदा अव्वल। विद्यार्थी जीवन में 50 से अधिक पुरस्कार।

संपर्क- एफ आई-1, हिमगिरिनाथ सोसायटी, 486-ए, एलफिंस्टन रोड, खडकी, पुणे-411003 (महाराष्ट्र)

मोबाइल- 9890122603, 9130 667788
ई-मेल- writersanjay@gmail.com

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जीवन - संजय उवाच

भयमिश्रित एक चुटकुला सुनाता हूँ। अँधेरा हो चुका था। राह भटके किसी पथिक ने श्मशान की दीवार पर बैठे व्यक्ति से पूछा,' फलां गाँव के लिए रास्ता किस ओर से जाता है?' उस व्यक्ति ने कहा, 'मुझे क्या पता? मुझे तो गुजरे 200 साल बीत चुके।'

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संजय भारद्वाज की दो कविताएं

जाता साल

(संवाद 2018 से)

करीब पचास साल पहले
तुम्हारा एक पूर्वज
मुझे यहाँ लाया था,
फिर-
बरस बीतते गए
कुछ बचपन के
कुछ अल्हड़पन के
कुछ गुमानी के
कुछ गुमनामी के,
कुछ में सुनी कहानियाँ
कुछ में सुनाई कहानियाँ
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बीज

जलती सूखी जमीन
ठूँठ-से खड़े पेड़
अंतिम संस्कार की
प्रतीक्षा करती पीली घास,
लू के गर्म शरारे
दरकती माटी की दरारें
इन दरारों के बीच पड़ा
वो बीज...,
मैं निराश नहीं हूँ
ये बीज मेरी आशा का केन्द्र है।
ये,
जो अपने भीतर समाये है
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विडम्बना

ऐसा लबालब
क्यों भर दिया तूने,
बोलता हूँ तो
चर्चा होती है,
चुप रहता हूँ तो
और भी अधिक
चर्चा होती है!

संजय भारद्वाज, पुणे
ई-मेल: writersanjay@gmail.com

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सृष्टि का खिलना

प्रात: घूमने निकला। दो-चार दिन एक दिशा में जाने के बाद, नवीनता की दृष्टि से भिन्न दिशा में जाता हूँ। आज निकट के जॉगर्स पार्क के साथ की सड़क से निकला। पार्क में व्यायाम के नए उपकरण लगे हैं। अनेक स्त्री-पुरुष व्यायाम कर रहे थे। उल्लेखनीय है कि व्यायाम करने वालों में स्त्रियों का प्रतिशत अच्छा था। देखा कि अधिकांश स्त्रियाँ, चाहे वे किसी भी आयु समूह की हों, व्यायाम से पहले या बाद में झूला अवश्य झूल रही थीं।

चिंतन का चक्र चला कि ऐसा क्या है जो स्त्रियों को झूला इतना प्रिय है? झूला भी ऐसा कि ऊँचा..और ऊँचा.., हवा में अपने अस्तित्व का आनंद अनुभव करना!...क्या हमने उनके पंख बाँध दिए हैं या कुछ-कुछ मामलों में काट ही दिए हैं?
...

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