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अभिमन्यु अनत
अभिमन्यु अनत का जन्म 9 अगस्त 1937 को त्रिओले, मॉरीशस में हुआ था । अभिमन्यु अनत ने हिंदी शिक्षण, रंगमंच, हिंदी प्रकाशन आदि अनेक क्षेत्रों में कार्य किए हैं । लाल पसीना, लहरों की बेटी, एक बीघा प्यार, गांधीजी बोले थे इत्यादि उपन्यास, केक्टस के दाँत, गुलमोहर खोल उठा इत्यादि कविता संग्रह तथा अपने सम्पादकीय व अन्य आलेखों के माध्यम से गत 50 वर्षो से हिंदी साहित्य को एक वैश्विक पहचान देने के लिए प्रयासरत रहे हैं ।
आप अनेक वर्षों तक महात्मा गांधी संस्थान की हिंदी पत्रिका \'वसंत\' के संपादक एवं सर्जनात्मक लेखन एवं प्रकाशन विभाग के अध्यक्ष रहे । आप \'वसंत\' एवं बाल-पत्रिका \'रिमझिम\' के संस्थापक थे । दो वर्षों तक महात्मा गांधी संस्थान में हिंदी अध्यक्ष रहे व तीन वर्ष तक युवा मंत्रालय में नाट्य कला विभाग में नाट्य प्रशिक्षक के पद पर रहने के अतिरिक्त अठारह वर्ष तक हिंदी अध्यापन कार्य किया ।
अभिमन्यु अनत का साहित्य अनेक विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में सम्मिलित है तथा उनपर अनेक शोधकार्य किए जा चुके हैं। आपकी की रचनाओं का अनुवाद अंग्रेज़ी, फ्रेंच सहित अनेक भाषाओं में किया गया है।
साहित्यिक कृतियाँ:
कविता संकलन: कैक्टस के दांत, नागफनी में उलझी सांसें एक डायरी बयान, गुलमोहर खौल उठा
संपादित कविता संकलन: मॉरीशस की हिंदी कविता, मॉरीशस के नौ हिंदी कवि ।
नाटक: विरोध, तीन दृश्य, गूँगा इतिहास, रोक दो कान्हा व देख कबीरा हांसी ।
कहानी संग्रह:
एक थाली समन्दर, खामोशी के चीत्कार, इंसान और मशीन, वह बीच का आदमी, जब कल आएगा यमराज।
उपन्यास: आपके छोटे-बड़े उपन्यासों की संख्या पैंतीस है जिनमें से कुछ प्रसिद्ध उपन्यास हैं : लहरों की बेटी, मार्क ट्वेन का स्वर्ग, फैसला आपका, मुड़िया पहाड़ बोल उठा, और नदी बहती रही, आन्दोलन, एक बीघा प्यार, जम गया सूरज, तीसरे किनारे पर, चौथा प्राणी, लाल पसीना, तपती दोपहरी, कुहासे का दायरा, शेफाली, हड़ताल कब होगी, चुन-चुन चुनाव, अपनी ही तलाश, पर पगडंडी मरती नहीं, अपनी-अपनी सीमा, गांधीजी बोले थे, शब्द भंग, पसीना बहता, आसमाप अपना आँगन, अस्ति-अस्तु, हम प्रवासी।
'लाल पसीना', जिसे महाकाव्यात्मक उपन्यास माना जाता है, आपके उपन्यासों में सर्वश्रेष्ठ कहा जाता है।
सम्मान: अभिमन्यु अनत को उनके लेखन के लिए अनेक सम्मान प्रदान किए जा चुके हैं जिनमें सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार, मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, यशपाल पुरस्कार, जनसंस्कृति सम्मान, उ.प्र. हिंदी संस्थान पुरस्कार सम्मिलित हैं। भारत की साहित्य अकादमी द्वारा आपको मानद महत्तर सदस्यता (ऑनरेरी फेलोशिप) का सर्वोच्च सम्मान प्रदान किया जा चुका है।
निधन: 4 जून 2018 को मॉरीशस में लम्बी बीमारी के पश्चात आपका निधन हो गया।
Author's Collection
Total Number Of Record :2अब कल आएगा यमराज
अपने गले में लटके मंगलसूत्र के तमगे को वह अपने अँगूठे और दो अँगुलियों के बीच उलटती-पलटती रही। उसकी सूखी आँखें चारदीवारी की कसमसाती खामोशी को घूरती रहीं। उससे चंद कदमों की दूर पर ही करन अपनी पत्नी के हाथ के तमगे की तरह अपने बदन के पुराने सोफे पर उलटता-पटलता जा रहा था वह पहला अवसर नहीं था कि करन उस तरह की छटपटाहट में था और अपने आपको असहाय पा रही थी। ऐसे अनेक क्षण बीत गए। वह शून्य के दायरे में खामोशी को झेलती रही।
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इतिहास का वर्तमान
एक बार जब बोनोम नोनोन अपने मित्र बिसेसर के साथ अपनी कुटिया के सामने ढपली बजाता हुआ जोर-जोर से गाने और नाचने लगा था तो मेस्ये गिस्ताव रोवियार उस तक पहुँच आया था। उस शाम पहले ही से बोतल खाली किए बैठे नोनोन ने जगेसर से चिलम लेकर गाँजे के दो लंबे कश भी ले लिए थे। उस ऊँचे स्वर के गाने के कारण मेस्ये रोवियार ने नोनोन को डाँटते हुए कहा था। कि वह जंगलियों की तरह शोर मत करे। रोवियार की नजर बिसेसर पर नहीं पड़ी थी, क्योंकि अपने पुराने मालिक के बेटे को दूर ही से ढलान पार करते बिसेसर ने देख लिया था। बिसेसर का घर नदी के उस पार था, जो इस इलाके में नहीं आता था। इस इलाके में बिसेसर का आना मना था; पर अपने मित्र नोनोन से मिलने वह कभी-कभार आ ही जाता था। शक्कर कोठी के छोटे मालिक गिस्ताव का आलीशन मकान, जिसे बस्ती के लोग 'शातो' कहते थे, वास्तव में एक महल ही तो था। नोनोन की झोंपड़ी से ऊपर जहाँ पहाड़ी दूर तक समतल थी और जहाँ यह महल स्थित था, वह स्थान तीन ओर से हरे-भरे मनमोहक पेड़ों से घिरा हुआ था।
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