देशभाषा की उन्नति से ही देशोन्नति होती है। - सुधाकर द्विवेदी।

विश्‍वंभरनाथ शर्मा कौशिक

कथाकार विश्वम्भरनाथ शर्मा कौशिक का जन्म अम्बाला छावनी में 1891 में हुआ। आप जब चार वर्ष के थे तब आपके दादाजी आपको कानपुर ले आए। आपने लगभग ३०० कहानियां लिखी हैं।

कथाकार विश्वम्भरनाथ शर्मा कौशिक की गणना प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, गुलेरी के समकक्ष की जाती है। समस्त हिंदी कथा-साहित्य में अकेले 'कौशिक' जी ही ऐसे कथाकार हैं जो इस क्षेत्र में प्रेमचंद के अधिक निकट हैं। आधुनिक हिन्दी कहानी के विकास में आपका महत्वपूर्ण स्थान है व आप आधुनिक हिंदी कहानी निर्माताओं में से एक थे।

आपकी कहानी 'ताई' हिंदी की श्रेष्ठ कहानियों में से एक है। 'ताई' कहानी में नारी की मनोवृति का सफल चित्रण किया गया है।

आपकी कहानियाँ उस समय की प्रसिद्ध पत्रिकाओं जैसे 'सरस्वती', 'माधुरी' और 'सुधा' इत्यादि में प्रकाशित होती थीं।

कौशिक जी 'विजयानन्द दुबे' के नाम से 'दुबेजी की चिट्ठियाँ' व 'दुबे जी की डायरी' भी विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लिखते रहे हैं। उनका हास्य-साहित्य अपने समय में मौलिक व बेजोड़ था।

1945 में 'कौशिक' जी का निधन हो गया।

मुख्य साहित्यिक कृतियाँ:

उपन्यास: माँ, भिखारिणी

कहानी संग्रह: खोटा बेटा, पेरिस की नर्तकी, साध की होली, चित्रशाला, मणिमाला, कल्लोल

 

 

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ताई | कहानी

''ताऊजी, हमें लेलगाड़ी (रेलगाड़ी) ला दोगे?" कहता हुआ एक पंचवर्षीय बालक बाबू रामजीदास की ओर दौड़ा।

बाबू साहब ने दोंनो बाँहें फैलाकर कहा- ''हाँ बेटा,ला देंगे।'' उनके इतना कहते-कहते बालक उनके निकट आ गया। उन्‍होंने बालक को गोद में उठा लिया और उसका मुख चूमकर बोले- ''क्‍या करेगा रेलगाड़ी?''

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पत्रकार

दोपहर का समय था। 'लाउड स्पीकर' नामक अंग्रेजी दैनिक समाचार पत्र के दफ्तर में काफी चहल-पहल थी। यह एक प्रमुख तथा लोकप्रिय पत्र था।

प्रधान सम्पादक अपने कमरे में मेज के सामने विराजमान थे। इनकी बयस पचास के लगभग थी।

इनके सम्मुख दो सहकारी सम्पादक उपस्थित थे। तीनों व्यक्ति मौन बैठे थे-मानो किसी एक ही बात पर तीनों विचार कर रहे थे।
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